जो शहीद नहीं, मग़र….

14 फ़रवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में CRPF के 42 जवानों की शहादत और 26 फ़रवरी को भारत द्वारा पाकिस्तान की सरज़मीं स्थित आतंकवादी कैम्पों पर हमला तथा बाद में पाकिस्तानी आर्मी के कब्ज़े से रिहा भारतीय जांबाज़ एयर फ़ाइटर अभिनन्दन वर्तमान की स्वदेश वापसी जैसे घटनाक्रम की चाशनी में फ़िलहाल देशभक्ति का जज़्बा चरम पर है । ये जज़्बा, स्थाई देशभक्ति के भाव की झलक है या फ़िर ‘त्योहारी’ उन्माद की शक़्ल अख़्तियार किया हुआ क्षणिक भावुक प्रदर्शन…. कहना मुश्क़िल है ! क्योंकि हिन्दुस्तान में, 20 साल पहले हुए, क्रिकेट वर्ल्ड कप के रिकार्ड्स को तो लोग (स्थाई भाव की तरह) याद रखते हैं मग़र सरहद पर शहीद हुए जाँबाजों को (अस्थाई भाव के तहत) भुलाने में देर नहीं लगाते। 14 फ़रवरी 2019 के बाद से ही इस वक़्त की टीम, देश भर में, लगातार लोगों से बात करती आई । लोगों के देशभक्ति वाले जज़्बात-जोश को आपके सामने रखा । मग़र देशभक्ति की ठोस बुनियाद ढूंढ़ने में लगी इस वक़्त की टीम को भारतीय सेना के रिटायर्ड कुछ ऐसे बहादुर फौज़ी मिले जो देश की सुरक्षा में बुरी तरह घायल हो चुके थे और लोगों की नज़र में अपाहिज़ से ज़्यादा अहमियत नहीं रखते थे लेकिन देशभक्ति के स्थाई भाव को आज भी सीने से लगाये घूम रहे हैं और पाकिस्तान को मटियामेट कर देने का हौसला रखते हैं । हालांकि, समाज में, उपेक्षित किये जाने का दर्द इनके सीने में बरक़रार है । ऐसे ही लोगों को खोजती हुई ‘इस वक़्त’ की टीम पहुंची लखनऊ के अमीनाबाद निवासी अज़हर ज़माल सिद्दीक़ी तक ।

अज़हर उन चंद जांबाज़ लोगों में से हैं जो भारत सरकार की हालिया कार्यवाही से बहुत ख़ुश हैं और मानते हैं कि पाकिस्तान को अब सबक़ सिखाना ज़रूरी है । ‘इस वक़्त’ से बातचीत करते हुए अज़हर के इरादों से ये साफ़ ज़ाहिर हुआ कि वो आज भी पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने को तैयार बैठे हैं । अपनी लिखी कविता को अज़हर कुछ यूँ गुनगुनाते हैं …..

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो

ऐ वीर सैनिकों भारत के धरती मां पर उपकार करो

मत धीर धरो प्रतिकार करो अब उठो शत्रु संहार करो

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो*

वीरों की लाशों पर कब तक यूं पुष्प चढ़ाए जाएंगे

सैनिक के लहू से कब तक यूं लव लेटर लिखे जाएंगे

ऐ वीर सपूतों भारत के उठो अब सीमा पार करो

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो*

क्या अब भी बात ज़रूरी है? आखिर कैसी मजबूरी है?

दक्षेस कारगिल समझौता ! क्या इच्छा अभी अधूरी है?

अब मनौव्वल त्याग भी दो, यू व्यर्थ में मत मनुहार करो

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो*

ऐ अहले-सियासत चुप भी करो तुम अपना कारोबार करो

एक बार तो कह दो सेना से अब अंतिम एक प्रहार करो

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो*

लाहौर, कराची, सिंध बलूचिस्तान हमें मिल जाएगा

भारत मां का दुनियां में सम्मान और बढ़ जाएगा

क्या सोच रहे हो बलवाना माता का फिर उद्धार करो

कश्मीर अगर जो लेना है तो पाकिस्तान पे वार करो

फ़रवरी 1989 में सिक्किम में बॉर्डर पर सुरक्षा करते हुए अंडर-माइन विस्फ़ोट में बुरी तरह से घायल अज़हर ज़माल की उम्र उस वक़्त 23 साल की थी और सेना की मेडिकल विंग में आये उन्हें महज़ 5 साल ही हुए थे । ऐसे में 23 साल की उम्र में शरीर का क्षतिग्रस्त हो जाना, यक़ीनन, एक बेहद मुश्क़िल दौर था ।

ये वो समय था जब अस्पताल में लगातार उनका इलाज़ चल रहा था । इस दरम्यां अज़हर ज़माल को इस बात की ख़ुशी थी कि उनका शरीर उनके मुल्क़ की सुरक्षा के मद्देनज़र टूटा-फूटा है लेकिन साथ ही उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा था कि अब उनकी आगे की ज़िन्दगी कैसे कटेगी । पर अज़हर ज़माल सिद्दीक़ी ने अपना हौसला छोड़ा नहीं । और महीनों अस्पताल में गुज़ारने के बाद अज़हर, अब, जीविकोपार्जन की तलाश में थे । क़िस्मत से, 1991 में, उन्हें LIC के आगरा डिवीज़न में नौकरी मिल गयी । आज 53 वर्षीय अज़हर के सामने रोज़ी-रोटी की समस्या नहीं है मग़र वो इस बात से इत्तेफ़ाक़ ज़रूर रखते हैं कि हर पूर्व सैनिक की क़िस्मत उनके जैसी नहीं होती । ज़्यादातर पूर्व सैनिकों को आर्थिक और समाजिक सम्मान के लिए खासी ज़द्दो-ज़हद करनी पड़ती है । एक बेटी और एक बेटे के बाप अज़हर को इस बात का मलाल है कि पूर्व सैनिकों को, समाज में, वो सम्मान हासिल नहीं होता जो होना चाहिए ।

अज़हर ज़माल के मन में इस बात को भी ले के पीड़ा है कि सेना में 20 साल की नौकरी के बाद 40-42 की उम्र में पूर्व सैनिक हो चुके जवानों को समाज में वो इज़्ज़त क्यों अनहि मिलती जिसके वो हक़दार होते हैं । अज़हर इस बात से दुःखी रहते हैं कि देश में फ़िल्मस्टार और क्रिकेटर्स के लिए तो सम्मान ता-उम्र बना रहता है मग़र सेना से रिटायर होने के बाद एक सैनिक को गॉर्ड की नौकरी से ज़्यादा कोई तवज़्ज़ो नहीं मिलती । यहां तक कि गॉर्ड की ड्यूटी के दौरान उन्हें गालियां सुनने को मिलती हैं और मार भी खाना पड़ जाता है । पाकिस्तान का वज़ूद मिटाने का जज़्बा रखने वाले अज़हर लोगों से गुज़ारिश करते हैं कि…. ” देशभक्ति का भाव स्थाई और मज़बूत होना चाहिए और देशवासियों को वर्तमान तथा पूर्व सैनिकों को इज़्ज़त देना चाहिए” । अज़हर कहते हैं कि ….“देश सर्वोपरि है । ये देश है तो हम हैं, आप सब हैं । इस वतन की सुरक्षा कर चुके या सुरक्षा में लगे जवानों को सलाम ज़रूर करना चाहिए । जय हिन्द । “

अज़हर ज़माल सिद्दीक़ी जैसे पूर्व सैनिक, हज़ारों हैं जो देश के नाम क़ुर्बान होने के लिए बैठे हैं । हमारा और आपका स्थाई सलाम ही इनका हौसला और जज़्बा है । इस वक़्त की ये पुरज़ोर कोशिश होगी कि मुल्क़ की अवाम, क्षणिक सुख देने वाले, क्रिकेटर्स और फिल्मस्टार्स से ऊपर इन सैनिकों को इज़्ज़त देना सीखे । ज़रूरत है हिन्दुस्तानियों को इन्हें हमेशा सलाम करने की । क्योंकि ये हैं हमारी स्थाई ख़ुशी-शांति और सुरक्षा के पैरोकार तथा पहरेदार । हमारे असली हीरो ।

नीरज वर्मा
संपादक
इस वक़्त

7 Responses to जो शहीद नहीं, मग़र….

  1. Jyoti Khare says:

    🇮🇳Jai Hind Azahar Bhai aap such me hamare Real Hero hai. Aaj bhut proud k sath khti hu ki aap Hamare Aminabad Lucknow ki Shaan hai. Sarkar ko aaplogo k liye bhi kuch krna chahiye.Aaj Hr insan Jai Hind bolkr ya likhkr apna Deshprem dikjata hai ek humble 🙏🙏Hm sb agr kisi aise Fouzi Bhai ko jante hai to ekbaar unko ❤se Respect krte hue Jai Hind zrur bole ….🙏🙏🇮🇳 Jai Hind

  2. Azhar Jamal siddiqui says:

    नीरज भाई आपको हार्दिक आभार
    आपने मेरी भावनाओं और मेरे शब्दों को जीवंत कर दिया। मेरी आवाज़ को अवाम के बीच लाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
    सच्चाई तो यह है कि हमारे सैनिकों के पैरो की धमक में वह शक्ति है कि पाकिस्तान जैसे मुल्क उस धमक से कांपते हैं मगर यह राजनीति उफ्फ…………. मेरी तो इच्छा है कि भारत का मतलब

    भारत= भारत +पाकिस्तान +बांग्ला देश
    यह होना चाहिए

  3. Anand Kumar Mishra says:

    सही आकलन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *