साहित्य में बढ़ते हाथ – ‘जय गिरनारी’ के साथ

मोबाइल और इंटरनेट के इस दौर में क़िताबें और पत्र-पत्रिकाएं दम तोड़ती सी लग रही हैं । लोगों का रूझान, खोजी विचारधारा की बजाय, इंटरनेट के ज़रिये ‘फ़टाफ़ट हासिल’ करने की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहा है । ये तस्वीर चौतरफ़ा है । हालांकि इस निराशाजनक दौर में भी कुछ लोगों को उम्मीद है कि उनकी कोशिशें, इस रूझान की, गति को धीमा कर सकती हैं । उत्तर-प्रदेश के जांबाज़ और राष्ट्रपति पद से सम्मानित पुलिस अधिकारी, समरजीत सिंह ‘विशेन’, द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘ जय गिरनारी ‘ सहित कुछ अन्य पुस्तकों के लोकार्पण समारोह पर जुटी साहित्यिक और प्रशासनिक हस्तियां इस बात का संकेत दे रही थीं । राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद के कृष्णा इंजिनीरिंग कॉलेज के ऑडिटोरियम (सभागृह ) में 16 जून 2019 को संपन्न इस शानदार कार्यक्रम में ‘जय गिरनारी ‘ सहित कुल 5 क़िताबों का लोकार्पण हुआ । इन 4 किताबों में यात्रा-वृत्तांत पर आधारित ‘जय गिरनारी‘ सहित बाल लेखिका योशिता यादव की ‘मैफ़ी एडवेंचर्स‘, निर्दोष प्रेमी की ‘एहसास के दिये हाइकुकार‘, ‘चश्मदीद ग़ज़ल-संग्रह‘ व् ‘गगन स्वर पत्रिका‘ शामिल रहीं ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही विख्यात साहित्यकार-लेखिका, डॉ. ममता कालिया, ने इस कार्यक्रम को अनूठा क़रार दिया और इस तरह के कार्यक्रमों को आज की ज़रुरत बताया । डॉ. ममता ने लोगों से आग्रह किया कि ‘समाज के सृजन में साहित्य का रोल’ को ज़रूर खंगालें । “लोगों ने मुझे लूटा है मेहमान बना के” ….. ये पंक्तियाँ रहीं , समारोह में बतौर मुख्य-अतिथि पधारे , बॉलीवुड के नामचीन गीतकार संतोष आनंद की । चलने-फ़िरने में असमर्थ संतोष आनंद ने इस कार्यक्रम को अनूठा कहा । ‘रोटी-कपड़ा और मक़ान’, ‘शोर’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘क्रांति’, ‘प्यासा सावन’, ‘प्रेम रोग’, ‘तिरंगा’ सहित कई हिट फिल्मों के गीत को अपने शब्द देने वाले संतोष आनंद ने एक साहित्यकार होने के अपने निजी अनुभवों और दुःख-दर्द को बेहतरीन लाइनों के साथ पेश किया ।

इस लोकार्पण समारोह में मंच पर साहित्य जगत की कई जानी-मानी हस्तियों में से एक जालौन के अपर जिला जज, माननीय अनिल यादव, ने अपनी कई रचनाओं से उपस्थित श्रोताओं का दिल जीत लिया । समारोह में विशेष आकर्षण का केंद्र रहे जाने-माने कवि डॉ. कुंवर बैचैन ने इस कार्यक्रम की तारीफ़ करते हुए , साहित्य को ज़िंदा रखने के लिए ‘जय गिरनारी’ के लेखक समरजीत सिंह का धन्यवाद दिया और उम्मीद ज़ाहिर की , कि ऐसे कार्यक्रम भविष्य में भी ज़िंदा रहेंगे ताकि सनद रहे । कार्यक्रम में शिरक़त करते हुए स्थानीय (साहिबाबाद) विधायक सुनील शर्मा ने भी समरजीत सिंह को, इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए, धन्यवाद कहा ।

मग़र इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी ख़ासियत रही इसका संचालन । अमूमन देखा जाता है, कि, साहित्य-समाज और संवेदनशीलता जैसे मुद्दे पर आयोजित कार्यक्रमों में लोगों का जमकर बने रहना और हर बात पर अपनी तालियों से दाद देना कम ही होता है , मग़र साहिबाबाद पुलिस उपाधीक्षक डॉ. राकेश तूफान और हरियाणा फिल्म की प्रसिद्द अभिनेत्री डॉ. अल्पना सुहासिनी के मिले-जुले संचालन ने लोगों का दिल जीत लिया । जहां डॉ. राकेश तूफान का बेहद जज़्बाती अंदाज़ लोगों में जमे रहने का जोश भरता रहा वहीं डॉ. अल्पना की हौसलाफ़ज़ाई वाली संवेदलशील अपील लोगों के दिल में बस गयी ।

कार्यक्रम का दायरा सिर्फ़ किताबों के लोकार्पण तक ही सीमित नहीं रहा , बल्कि, “प्रकृति पुरुष व पर्यावरण” शीर्षक पर संवाद भी हुआ । रुद्र प्रकाश गौतम (वरिष्ठ प्रबन्धक ओरिएंटल बैंक आफ कॉमर्स) साहिबाबाद और श्याम नारायण सिंह ‘अघोरी’ (पुलिस अधीक्षक, यातायात गाजियाबाद) ने इस विषय पर संक्षिप्त लेकिन ज़रूरी मुद्दों की तरफ़ लोगों का ध्यान खींचा । पर एक बात जो सबके दिल में प्रशंसा का पात्र बन गयी, वो थी ‘गगन स्वर पत्रिका’ की ये शानदार कोशिश । दरअसल साहित्य को लगातार लोगों से जोड़ने के लिए प्रयासरत ‘गगन स्वर पत्रिका’ ही इस कार्यक्रम की संयोजक रही । साहित्य के प्रचार-प्रसार के अपने प्रयासों को साझा करते हुए पत्रिका के संपादक, ए.के. मिश्रा, ने कहा कि समाज का दर्पण है साहित्य और इसके विस्तार की ज़रुरत है । ए.के. मिश्रा ने इस तरह के कार्यक्रमों की प्रासंगिकता पर बल दते हुए ये विश्वास दिलाया कि ‘गगन स्वर पत्रिका’ का ऐसा प्रयास जारी रहेगा । कार्यक्रम में बतौर अतिथि उपस्थित, उत्तर-प्रदेश के सीनियर IAS अधिकारी, सुनील श्रीवास्तव ने साहित्य और लेखन के इस छोटे से ‘कुम्भ’ मेले पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की । सुनील श्रीवास्तव ने समरजीत सिंह और ए.के. मिश्रा के इस संयुक्त प्रयास को बेहद सार्थक बताया और आने वाले दिनों में इस तरह के कार्यक्रमों में इज़ाफ़ा होने की आशा व्यक्त की ।

पर सबकी नज़र रही, कार्यक्रम के अगुआ और केंद्र-बिंदू रहे, ‘जय गिरनारी’ के लेखक समरजीत सिंह ‘विशेन’ पर । एक पुलिस अधिकारी की आध्यात्मिक यात्रा का तज़ुर्बा सुनने के लिए सबके मन में सवाल और ख़्याल था । इन्हीं सवालों और ख्यालों के प्रतिउत्तर में समरजीत सिंह ‘विशेन’ ने अपनी 24 दिन की ‘गिरनारी यात्रा’ का प्रेरणा-स्त्रोत भगवान् दत्तात्रेय को बताया और “वाराणसी से पुनः वाराणसी तक” उन 24 दिनों के दरम्यान घटित तमाम आध्यात्मिक/धार्मिक पहलुओं को छुआ । समरजीत सिंह की इन कोशिशों का पूरे हॉल में तालियों की गूँज से स्वागत हुआ । लोगों के पीठ थप-थपाने की इस अदा पर समरजीत सिंह बुदबुदा उठे ……. ” पुलिसवाला हूँ तो क्या हुआ , इंसानियत और आस्था मुझ में ज़िंदा थी, है और रहेगी ” और अंत में जाते-जाते, ये ‘कुम्भ’,  कृतज्ञता के साथ ये वादा कर गया कि …. ” फ़िर मिलेंगे – एक नए सफ़र के साथ ” ।

इस वक़्त‘ ब्यूरो

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