“उत्तर-प्रदेश सरकार से तंग आ चुके हैं , ऐसा लगता है यू.पी. में जंगलराज है” :- सुप्रीम कोर्ट । जी हाँ , उत्तर-प्रदेश में बिगड़ती क़ानून व्यवस्था को देखते हुए देश की सर्वोच्च अदालत, माननीय उच्चतम न्यायालय, ने ये तल्ख़ टिप्पणी उत्तर-प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ की है । हालत ये है कि हिंदुत्व के एजेंडे के अगुवाई करने वाले शीर्ष नेताओं में से एक, सूबे के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ पर भरोसा अब ख़ुद हिंदुत्ववादी संगठन के नेता तक नहीं कर रहे । 19 अक्टूबर 2019 को मारे गए हिन्दू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी के बेटे का कहना है कि …. ” (उनके पिता की ह्त्या में) जो लोग पकडे गए हैं, अग़र उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत है तो जांच NIA (National Investigation Agency) करे (क्योंकि) मुझे इस (योगी सरकार व्) प्रशासन पर भरोसा नहीं “।
बल्कि इसके पहले 30 सितम्बर 2019 को राज्य के सोनभद्र जिले की रेणुकूट नगर-पंचायत के बेहद लोकप्रिय नगराध्यक्ष शिवप्रताप सिंह उर्फ़ बबलू सिंह की खुलेआम गोली मारकर ह्त्या कर दी जाती है । इस हत्याकांड की पूरे प्रदेश में चर्चा हुई मगर इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी स्थानीय भाजपा नेता और रेणुकूट नगर-पंचायत का पूर्व नगराध्यक्ष अनिल सिंह और उसके साथी गिरफ़्तारी में भी निश्चिन्त हैं कि उनकी सरकार है, आज नहीं तो कल वो छूट जाएंगे । इसी साल सोनभद्र जिले में भयंकर नरसंहार भी हुआ, उसमें भी बहुत कुछ नहीं हुआ । पिछले साल 25 अक्टूबर 2018 को सोनभद्र जिले के ही चोपन नगर-पंचायत के तत्कालीन नगराध्यक्ष इम्तियाज़ की सरेआम बीच-बाज़ार ह्त्या कर दी जाती है और मामला तारीख़-पर-तारीख़ तक ही सिमटा रहता है । एक साल में एक ही जिले के दो नगरअध्यक्षों की खुलेआम ह्त्या । उन्नाव रेप और मर्डर केस की गूँज तो पूरे इंडिया में सुनाई दी । सहारनपुर में भाजपा पार्षद धारा सिंह को सड़क पर ही मार दिया जाता । सहारनपुर के देवबंद में, 8 अक्टूबर 2019 को, एक और भाजपा नेता यशपाल सिंह को भी बिना किसी ख़ौफ़ के सरेआम मारा जाता है । दो दिन बाद ही बस्ती जिले में भाजपा के नेता कबीर तिवारी की ह्त्या कर दी जाती है । जून 2019 में जौनपुर जिले में समाजवादी पार्टी से जुड़े दो नेताओं की ह्त्या हो जाती है ।
ये कुछ बानगी है उत्तर-प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था की । मग़र लिस्ट बड़ी लम्बी है । इतनी लम्बी कि विस्तार से ज़िक़्र करने में कई पेज की ज़रुरत पड़ेगी । इसके अलावा यहां एक बार और ग़ौर करने लायक है कि ये लिस्ट बहुचर्चित या हाई प्रोफ़ाइल मामलों की है । आम आदमी से जुड़े मामलों को भी अगर शामिल कर लिया जाए तो सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी से मेरी बातों को बल मिलता है कि उत्तर-प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था बिगड़ चुकी है । हाईकोर्ट का वक़ील होने के नाते, मैं, समझता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट की इतनी कड़ी टिप्पणी तभी आयी है , जब पानी सर से ऊपर हो चूका है ।
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी , राज्य के मुख्यमंत्री और पुलिस-महानिदेशक के उस दावे की भी धज्जी उड़ाती है, जिसमें उत्तर-प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था में सुधार की बात कही जाती है । सवाल ये नहीं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और पुलिस मुखिया क्या कहते हैं, बल्कि, सवाल ये है कि लगातार हत्याओं का दौर जारी क्यों है ? अपराधियों में हिम्मत पैदा करने वाले लोग कौन हैं ? कौन सी ऐसी बात है, जिसके चलते अपराधियों में ख़ौफ़ ख़त्म सा लगता है ? कौन लोग हैं जो किसी की जान ले लेते हैं चंद पैसों या रूतबे के लिए ? इन अपराधियों या भाड़े के शूटरों को वैचारिक-आर्थिक-राजनीतिक-प्रशासनिक सहयोग देने वाले कौन से सफेदपोश हैं ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपराधियों में ख़ौफ़ पैदा करने और उनको ठोक देने की वक़ालत सार्वजनिक मंच से करते हैं, लेकिन अपराधी बेलगाम हो चुके हैं और उनकी खिल्ली उड़ाते हुए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं । अपराध और राजनीति के मिले-जुले संस्करण पर कई फ़िल्में बन चुकी हैं और “नेताओं की सरपरस्ती के बिना अपराध मुमक़िन नहीं” वाला डायलॉग कई बार बोला जा चुका है, मग़र मुआ ये अपराध रूकने का नाम नहीं लेता । धर्म-पैसे-राजनीतिक वर्चस्व या किसी भी मुद्दे को लेकर किसी की जान लेने का हक़ किसी को नहीं । किसी का क़त्ल करने के लिए तैयार हो जाना या पैसे देकर भाड़े के हत्यारों से किसी की ह्त्या करने-कराने वालों को समाज में जीने का हक़ बिलकुल नहीं होना चाहिए, मग़र ये लोग बेख़ौफ़ समाज में मौज़ूद हैं, तो कैसे ? कौन है रहनुमा जो इनकी बेख़ौफ़ सरपरस्ती करता है क़ानून को ठेंगे पर रखकर ? ये मानवाधिकार वाले तब तक क्यों सोये रहते हैं , जब तक किसी अपराधी का एनकाउंटर नहीं हो जाता ? एनकाउंटर होते ही ये इतने सक्रिय क्यों हो जाते हैं ?
संविधान को साक्षी मानकर क़ानून-व्यवस्था की रखवाली करने की शपथ लेने वाले ,नेता-अधिकारी , अपराधियों के माई-बाप क्यों बन जाते हैं ? ये सिर्फ़ योगी सरकार से जुड़ा मामला नहीं है , बल्कि, हर राजनीतिक दल से जुड़ा सवाल है, कि देश हो या देश का सबसे बड़ा प्रदेश उत्तर-प्रदेश …. इन अपराधियों को कौन सा नेता या अधिकारी पालता है ? जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों और हत्यारों को बचाने वाले नेताओं की लिस्ट अब तक उजागर क्यों नहीं हुई ? हर पार्टी, अपराधियों और माफ़ियाओं को टिकट देने में तक में परहेज़ नहीं करती, क्यों ? सभ्य समाज में नासुर बन चुके हत्यारों-अपराधियों-बलात्कारियों को कौन कहता है कि “सब करते रहो, देख लेंगे” ? यक़ीनन इन अपराधियों को पनाह देने वाले असली गुनाहगार हैं । इन्हें सज़ा मिलती है तो अपराधी , अपराध करने से पहले, हज़ार बार कांपेंगे । आज उत्तर-प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था पर, यदि, माननीय उच्चतम न्यायालय ने इतनी कड़ी टिप्पणी की है तो मुख्यमंत्री योगी जी सोचना पड़ेगा कि विपक्ष में बैठ कर ताने मारना बड़ा आसान है मग़र ह्त्या और अपराध के सौदागरों पर नकेल कसना बड़ा मुश्किल काम । मामला गंभीर है ।
योगी जी , ज़रा सोचिये !
कृष्णप्रताप सिंह
अधिवक्ता
हाईकोर्ट
(लखनऊ बेंच)
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