विश्वव्यापी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (UN-United Nations) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को ही हो गयी थी मग़र दुर्भाग्य की बात ये रही कि मानवाधिकार से जुड़ी इसकी इकाई (UNHRC-United Nations Human Rights Council) की स्थापना होने में 61 साल का वक़्त और लग गया । 2006 में UNHRC की स्थापना हुई । इसमें कोई शक़ नहीं कि दुनिया की सबसे बड़ी ये संस्था हर मुमक़िन कोशिश करती है कि आम आदमी , मानवाधिकार के प्रति, जागरूक हो और उसे इसका लाभ मिले । लेकिन दुनिया बहुत बड़ी है और (ज़मीनी तौर पर) इस दिशा में काम करने वाली संस्थाएं बहुत कम । ज़्यादातर संस्थाए अपने नफ़ा-नुक़सान के चलते मानवाधिकार शब्द को ख़ासे धंधे में तब्दील कर चुकी हैं । लेकिन कुछ ऐसी संस्थाएं, इस दिशा में, आज भी यक़ीनी तौर पर कार्यरत हैं जिन्होंने काम के दम पर आम आदमी के दिल में अपनी जगह बनाई है , अपनी एक अलग पहचान बनाई है । ऐसी ही एक संस्था है देश की राजधानी, दिल्ली , में । इस संस्था का नाम है IHRO (International Human Rights Organization) यानि अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन । आज की तारीख़ में ये संस्था देश-विदेश के अखबारों में सुर्खियां बटोर रही है । पेश है इस संस्था के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष, नेम सिंह प्रेमी की ‘इस वक़्त’ के सम्पादक नीरज वर्मा से ख़ास बातचीत …..
प्रश्न 1:- सबसे पहले तो IHRO की स्थापना का साल और इसकी स्थापना के पीछे के कारणों को बताएं ?
उत्तर:- IHRO की स्थापना साल 2009 में हुई थी और स्थापना के पीछे का मूल कारण रहा मानवाधिकार के हनन को रोकना और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को मानवाधिकार से जुड़े अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें प्रेरित करना ताकि विश्व-व्यापी मानवाधिकार हनन पर अंकुश लगाने में मदद मिल सके ।
प्रश्न 2:- IHRO का शुरुवाती सफ़र कैसा रहा और आम आदमी का कितना सहयोग मिलता रहा अब तक ?
उत्तर:- शुरुवाती सफ़र कठिन तो रहा , मग़र निराशाजनक नहीं रहा । IHRO इस मामले में ख़ुशक़िस्मत रहा कि इसकी स्थापना से लेकर आज तक, हमें अनदेखा नहीं किया गया । हमारी क़ोशिशों को कमतर नहीं माना गया ।आम आदमी का सहयोग हमें मिल रहा है । कुल मिला-जुला कर IHRO का , अब तक का, सफ़र अच्छा रहा ।
प्रश्न 3:- मानवधिकार से जुड़ी तमाम संस्थाएं हैं, IHRO उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर:- देखिये हर एक संस्था का अपना उद्देश्य रहता है । कुछ संस्थाएं कुछ वक़्त बाद अपने उद्देश्य से भटक जाती हैं और अनेपक्षित गतिविधियों में शरीक़ होने लगती हैं । लेकिन IHRO ने स्थापना के वक़्त जिन मूलभूत सिद्धांतों को अपना आधार बनाया था , आज भी, उन्हीं सिद्धांतों पर चल रहा है । मानवाधिकार हनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और इसे रोकना ही IHRO का उद्देश्य था, है और रहेगा ।
प्रश्न 4:- आज राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय स्तर पर IHRO की क्या पहचान है और इसका कितना विस्तार हुआ है ?
उत्तर:- राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर IHRO बहुत सक्रिय है । अपनी स्थापना के दस साल बाद, आज, IHRO गर्व से ये कह सकता है कि जिन उद्देश्यों को लेकर इसकी स्थापना हुई थी , उसका विस्तार देश के चारों कोनों के साथ-साथ विदेशों में भी हुआ है । बड़ी संख्या में लोग हमारी कार्यशैली और जज़्बे से प्रभावित हुए हैं और जुड़े हैं । आज IHRO एक विशाल परिवार है ।
प्रश्न 5:- मानवाधिकार से जुडी संस्थाओं पर आरोप लगता है कि ये मानवाधिकार से ज़्यादा अपने राजनीतिक-आर्थिक-समाजिक नफ़ा-नुक़सान के आधार पर काम करती हैं ! कितना सच है ये आरोप ? IHRO भी इन आरोपों का शिकार है क्या ?
उत्तर:- देखिये, मैं, किसी और पर टिप्पणी तो नहीं करूंगा , लेकिन जहां तक IHRO का सवाल है , हमारी, कोशिश है कि हम पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ अपने लक्ष्य को अंजाम तक ले जाएं । मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर जमे रहना ही हमारी प्राथमिकता है ।
प्रश्न 6:- मानवाधिकार संस्थाओं के कार्यों को आप ईमानदारी के साथ समाजसेवा के तौर पर देखते हैं या फ़िर इन मानवाधिकार संस्थाओं की आड़ में कोई और ‘ख़ेल’ होता है ?
उत्तर:- मैं किसी और ‘खेल’ के बारे में नहीं जानता, लिहाज़ा इस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं समझता । लेकिन, मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि मानवाधिकार से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं को मानव व् समाज हित में काम करते रहना चाहिए । IHRO इसी सोच पर काम करता है ।
प्रश्न 7:- IHRO की कुछ ऐसी उपलब्धियां, जो स्थानीय या अंतराष्ट्रीय स्तर पर, सराही गई हों या सुर्ख़ियों में रही ?
उत्तर:- ऐसे कई अवसर आए , जब, IHRO ने अपनी भूमिका में शानदार प्रदर्शन किया । देश-विदेश में फैले IHRO के कार्यकर्ताओं ने कइयों का दिल जीता । अनेक मौक़ों पर अखबारों की सुर्खियां और IHRO से लोगों की बढ़ती उम्मीद हमारी उपलब्धियों का ज़मीनी पैमाना है । इसके अलावा IHRO का काफ़ी बड़ा परिवार भी आपके सवाल का माक़ूल जवाब है ।
प्रश्न 8:- IHRO या अन्य मानवाधिकार संस्थाओं के करता-धर्ताओं को, अपने कार्य-क्षेत्र में, किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:- जब भी आप मानवाधिकार से जुड़े मामलों को लेकर आगे बढ़ते हैं तो आपको ढेर सारी दिक्कतों और दबावों का सामना करना पड़ता है , तक़लीफ़ें उठानी पड़ती है लेकिन हमारे सहयोगी अपने लक्ष्य के प्रति उत्साहित और दृढ़ संकल्पित होते हैं, ऐसे में IHRO रुकता नहीं , आगे बढ़ता है । रहता है मन में विश्वास, उसी उम्मीद और जज़्बे के साथ । हम होंगे क़ामयाब ।
प्रश्न 9:- UNHRC (United Nations Human Rights Council) और IHRO की कार्यशैली में क्या अंतर या क्या समानता है ?
उत्तर:- देखिये चाहे UNHRC हो या IHRO, मक़सद दोनों का, एक ही है । मानवहित के लिए काम करना UNHRC का मूल उद्देश्य है और IHRO अपनी स्थापना के समय से ही UNHRC की नीतियों पर चल कर मानव-हित में अपना योगदान देने के लिए पूरी शिद्दत के साथ प्रयासरत है ।
प्रश्न 10:- आज भी आम आदमी, मानवाधिकार से जुड़े आरोपों के मद्देनज़र, बहुत जानकारी नहीं रखता, IHRO इस दिशा में अब तक क्या कर सका है ?
उत्तर:- बिल्कुल सही कहा आपने । आज भी, आम आदमी के पास, मानवाधिकार से जुड़ी जानकारी न के बराबर है । इस बात को ध्यान में रखते हुए IHRO की ये क़ोशिश रहती है कि, देश-विदेश के हर कोने में, मानवाधिकार से जुड़ी बातें और अधिकार की जानकारी ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुंचाई जाए और इस मिशन का विस्तार किया जाए ।
प्रश्न 11:- मानवाधिकार संस्थाओं को बड़े पैमाने पर आर्थिक सहूलियत चाहिए होती है । ऐसे में IHRO सहित मानवाधिकार से जुड़ी संस्थाओं की आर्थिक ज़रूरतें कैसे पूरी होती है ?
उत्तर:- इसमें कोई-दो राय नहीं कि इस दौर में आर्थिक सहूलियतें , अपना बड़ा योगदान देती हैं और जटिलता को आसान बनाती हैं । लेकिन जज़्बा न हो, सिर्फ़ धन हो तो उसका भी कोई मतलब नहीं । IHRO की आर्थिक सहूलियतों की पूर्ति सहयोगियों के योगदान पर निर्भर है । ।
प्रश्न 12:- असंतुलित समाजिक ताना-बाना हो या फ़िर प्रशासनिक लापरवाही या फ़िर न्याय में देरी , ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आम आदमी को हताश-निराश करते हैं , IHRO इनसे लड़ने में कितना सक्षम है ?
उत्तर:- बिल्कुल सही बात है । आपका सवाल संजीदा है और मानवाधिकार से जुडी संस्थाओं के लिए बड़ा प्रासंगिक है । IHRO की कोशिश होती है कि इन सारे मामलों में समन्वय की भूमिका के ज़रिये इन परेशानियों को दूर किया जाए और पीड़ित पक्ष को न्याय मिल सके ।
प्रश्न 13:- IHRO की भविष्य में क्या योजनाएं और उम्मीद है ?
उत्तर:- IHRO की उम्मीद है कि आम आदमी IHRO से जुड़कर मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों को समझे और इसे छोटी से छोटी इकाई तक पहुंचाए । हमारी क़ोशिश है कि IHRO का ‘मानवाधिकार जनजागरण अभियान’ हर शहर, गाँव-क़स्बे, स्कूल-कॉलेज में पहुंचे और लोग इसकी अहमियत समझें ।
प्रश्न 14:- देश या विदेश का आम आदमी , IHRO पर कितना भरोसा कर सकता है और इस से, कैसे जुड़ सकता है ?
उत्तर:- IHRO से जुड़ना बहुत आसान है । बतौर IHRO अध्यक्ष, मैं, आम आदमी को विश्वास दिलाना चाहता हूँ हमारी संस्था विशुद्ध रुप से मानवीय सेवा का एक हिस्सा है और दुनिया का कोई भी व्यक्ति हमसे जुड़कर इसमें अपना बहमूल्य योगदान दे सकता है । आप हमारी वेबसाइट www.ihroworld.org पर जाकर या फ़ेसबुक पर जाकर हमसे जुड़ सकते हैं ।
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