क्रीं-कुण्ड और 10 फ़रवरी

(वाराणसी स्थित) अघोर-परम्परा के हेडक्वार्टर– “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” का प्रवेश द्वार

अध्यात्म की सर्वोच्च अवस्था….यानी….अघोर और अघोरियों की चर्चा, दुनिया में, कहीं पर भी होती है तो विश्व-विख्यात अघोरपीठ अघोर-परम्परा के हेडक्वार्टर “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” का और यहाँ के मुखिया (पीठाधीश्वर) का ज़िक्र सबसे पहले होता है ! स्वाभाविक भी है ! जब केंद्र-बिन्दु की चर्चा न हो तो परिधि और वृत्त के निर्माण की कल्पना-परिकल्पना निरर्थक ही होती है ! अध्यात्म का शिखर, अघोर, जितना अदभुत है, वैसा ही अदभुत है इसका हेडक्वार्टर…. “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड”  ! सही मायनों में अकल्पनीय, अविश्वसनीय- अदभुत है…. यहाँ की घटनाएं ! 10 फ़रवरी की तारीख़ भी इनमें से एक है ! ये तारीख़, अघोर-परम्परा और हेडक्वार्टर  “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” के अंतर्गत घटने वाली अनगिनत अविश्वसनीय घटनाओं में से एक है !

अघोर-परम्परा के ईष्ट-मुखिया-आराध्य– क्रीं-कुण्ड के पीठाधीश्वर— अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी 

वाराणसी (काशी) स्थित औघड़-परम्परा का महान तीर्थ-स्थान “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” महज़ एक पौराणिक आध्यात्मिक स्थान भर नहीं है ! इस वैज्ञानिक-युग में भी, सम्पूर्ण-ब्रह्माण्ड के, बतौर कंट्रोल-रूम इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है ! इस परम्परा के बारे में फ़ैली कई भ्रांतियों को बखूबी तोड़ता हुआ ये स्थान वाकई अदभुत है ! सबके लिए ! शर्त, इतनी सी….कि….आप इस स्थान को जानने की ठान चुके हैं ! आँखों से दूर, हर पल, यहाँ घटती अदभुत अलौकिक घटनाएं, सक्षम साधकों-श्रद्धालुओं और अकल्पनीय जानकारी के भूखे लोगों में रोमांच भर देती हैं ! कौतूहल पैदा होता है ! आँख से न दिखने वाला ! सिर्फ़ अनुभव…..जी हाँ, सिर्फ़ अनुभूति ही एकमात्र ज़रिया है, बशर्ते आप इसके लिए राज़ी हों ! वक़्त ज़ाया किये बिना अघोर-परम्परा के बारे में लिखने-जानने का दावा करने वालों को आप, ज़मीन की खाक़ छानने वालों से दूर, “हुनर बेचने वाले सौदागर” कह सकते हैं ! अघोर को शमशान और वीभत्सता का तमाशा-भर घोषित करने वाले टी.वी. चैनल्स की सनसनी और अखबारों में पसरे “स्वयंभू” अनुभव, आपको, अघोर से बहुत दूर कर देते हैं ! आपके मूड के हिसाब से, परोसी गयी सामग्री, आपके ख्यालातों में तब्दीली नहीं कर पाती ! जबकि हक़ीक़त तो ये हैं, कि, इस स्थान के इतिहास-वर्तमान की तस्वीर कमोवेश एक ही है, फ़र्क सिर्फ़ आईने का है ! वक़्त के बदलते मिजाज़ के साथ आईने भी बदले हैं ! यह स्थान कई अविश्वसनीय व् अदभुत घटनाओं को समेटे एक शीर्ष आध्यात्मिक तपोस्थली है ! यहाँ का हर पल अपनी अलग गवाही रखता है ! 10 फ़रवरी की तारीख़ भी कुछ यूँ ही अविस्मर्णीय गवाही देती है ! गवाही उस ईश्वरीय तन के मानवीय तन में पुनः साकार होने की !

विश्व-विख्यात औघड़ तख़्त पर आसीन अघोर परम्परा के मुखिया– अघोराचार्य महाराजश्री सिद्धार्थ गौतम राम जी 

औघड़-संतों के बारे में ये बात तो सत्य है कि ये अजन्मा होते हैं ! चलते-फिरते शिव होते हैं !  समय-काल के अनुरूप उचित गर्भ में प्रवेश कर मानव-तन के रूप में सामने आते हैं और शरीर की औपचारिकता ख़त्म होते ही मानव-तन का चोला झटक देते हैं ! साल 1977 में इन औपचारिकताओं की सुगबुगाहट एक बार फ़िर शुरू हो गयी ! इस पीठ के 10वें पीठाधीश्वर, आदि-गुरू दत्तात्रेय स्वरुप परम-पूज्य राजेश्वर राम बाबा उर्फ़ बुढ़ऊ बाबा अपने जर्जर बीमार शरीर को हटा देने पर अमादा थे और चाहते थे कि उनके दीक्षित शिष्य (20वीं सदी के महान संत) अघोरेश्वर भगवान् राम, इस पीठ के 11वें पीठाधीश्वर की भूमिका में आ जाएँ ! पर गंगा उस पार “कुष्ठ सेवाश्रम” और “श्री सर्वेश्वरी समूह” के ज़रिये कुष्ठी-जनों और अन्य मानवीय-सेवा में रत अघोरेश्वर भगवान् राम ने गुरू के निवेदन पर असमर्थतता जताई ! गुरू-शिष्य के इस संवाद को ऐसे देखा जाए तो ये एक बेहद आम संवाद था ! मगर आध्यात्म के शिखर पर बैठे दो-महान औघड़ संतों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो इस मूक-संवाद की मूक-भूमिका बहुत पहले ही तैयार हो चली थी ! किसी के आने का इंतज़ार हो रहा था ! आम-जन में से कोई कुछ भी समझ नहीं पा रहा था ! हालांकि, एक बच्चे का आगमन इस पीठ पर, पहले से ही, शुरू हो चुका था ! आगमन, वो भी अघोरेश्वर महाप्रभु के साथ और आमना-सामना बुढ़ऊ बाबा से ! दो-महान औघड़ संतों के बीच एक बालक ?  (इस बच्चे की उत्पत्ति-आगमन का मूल-सूत्र आज तक रहस्यमय है !) कौन हैं, ये बालक ? उस समय ये सवाल आम था ! प्रश्न यक्ष था ! जवाब गायब था !  इस बीच इतनी जानकारी, लोगों को, अवश्य हो गयी कि ये बालक अघोरेश्वर महाप्रभु के दीक्षित शिष्य हैं ! मिलने-जुलने की ये प्रक्रिया जारी रही ! हालांकि ये आध्यात्मिक मिलन बहुतों की समझ के बाहर था ! पर संतों के इस मिलन का ख़ुलासा हुआ- 10 फ़रवरी 1978 को !

(बाएं) बुढ़ऊ बाबा जी  और (दाएं) अघोरेश्वर महाप्रभु जी  के साथ बाल कीना यानि अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम 

10 फ़रवरी 1978 (दिन-शुक्रवार) को जहां, इस पीठ के 10वें पीठाधीश्वर, आदि-गुरू दत्तात्रेय स्वरुप परम-पूज्य राजेश्वर राम बाबा उर्फ़ बुढ़ऊ बाबा ने अपने मानव-तन के चोले को झिटक कर समाधि स्वरुप धारण कर लिया , वहीं ईश्वरीय-स्वरुप ने उस 9 वर्ष के अदभुत बालक का तन धारण कर, बतौर ब्रह्माण्ड-नियंता, इस आदि-शक्ति पीठ के 11वें पीठाधीश्वर के तौर पर कमान संभाली ! हज़ारों की तादाद में मौज़ूद भक्तजन और दुर्लभ संत-महात्माओं की उपस्थिति में 9 साल का बच्चा सम्पूर्ण जगत में अघोर-परम्परा का मुखिया घोषित कर दिया गया ! स्वयं अघोरेश्वर महाप्रभु की देख-रेख में हुए इस घटनाक्रम ने आध्यात्म-जगत को सन्न कर दिया ! आध्यात्म-जगत और देश-विदेश से जुड़ी आध्यात्मिक विभूतियों के लिए ये अत्यंत आश्चर्यजनक घटना थी ! लोग इन बालक का दर्शन करने के लिए बेताब हो उठे ! ये घटना वाकई अविश्वसनीय रही ! हो भी क्यों न ! एक 9 वर्ष का बच्चा, आध्यात्म-जगत का मुखिया-ईष्ट-आराध्य ! घोर आश्चर्य ! मगर इस घटना को घटना ही था ! क्योंकि ये घटना है, भगवान शिव के मानव-तन , बाबा कीनाराम जी, के पुनरागमन की ! पुरागमन की ये भविष्यवाणी किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी ने की थी ! ये घटना बेहद अदभुत-औलौकिक-अविश्वसनीय है और पूरे प्रमाण के साथ मौजूद है ! इस घटना का रिमाइंडर बीते 36-37 वर्षों से सबके सामने बजता है, पर संदेह की गुंजाइश को बरक़रार रखने की भी व्यवस्था कर दी गयी है ! कपालेश्वर, औघड़-अघोरेश्वर, की लीला देखिये कि सबका कपाल फिरा दिया ! ये एहसास करा दिया कि अनुभूति और मानसिक विवेक का आलय, कपाल, भी इनकी मर्ज़ी से ही कार्यान्वित होता है ! रोज़ी-रोटी, मान-सम्मान, ऋद्धी-सिद्धि में उलझा आम आदमी तो आम आदमी, बड़े-बड़े ऋद्ध-सिद्ध भी भ्रम का शिकार हैं ! यानि बाबा कीनाराम जी के पुनरागमन की घटना का भान भी किसी-किसी को ही है !

“क्रीं-कुण्ड” में 10 फ़रवरी को भक्तों को दर्शन देते और महाराजश्री और (दाएं) कतार में दर्शन हेतु खड़े लोग 

सन 1771 में अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी , अपने 170 साल के नश्वर शरीर को छोड़ समाधि लिए ! समाधि के वक़्त भक्त-गण, पशु-पक्षी रोने लगे और यहाँ तक कि प्रकृति भी उदास हो चली ! तभी आकाशवाणी हुई और आसमान से एक विशाल भुजा सबके ऊपर से गुज़री और आवाज़ आयी कि …….. ” प्रिय भक्तों, रो मत ! यहाँ आते रहना कल्याण होता रहेगा ! मैं इस पीठ की ग्यारहवीं (11) गद्दी पर , पुनः, बाल-रूप में आउंगा और तब इस स्थली के साथ-साथ सम्पूर्ण जगत का जीर्णोद्धार और पुनः-निर्माण होगा ! ” 10 फरवरी 1978 को महाराजश्री की आकाशवाणी सत्य साबित हुई ! वो बाल-रूप में पुनः इस गद्दी के 11वें पीठाधीश्वर के रूप में पुनः आसीन हुए ! नया नाम …. अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी ! हर वर्ष, 10 फ़रवरी का दिन “अभिषेक-दिवस” के तौर पर मनाया जाता है ! इस दिन बाल कीना यानि अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का दर्शन करने देश-दुनिया से लाखों लोग पहुँचते हैं ! आज, अपने स्वरुप को एक कर्मठ युवा की चादर में, महादेव ( अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी को भक्तगण इसी नाम से सम्बोधित करते हैं ) ने गोपनीयता का इतना घना आवरण ओढ़ रखा है कि इन्हें “समझ के भी ना समझ पाना” ! वातावरण में तर्क़-कुतर्क़ के मध्य इत्मिनान से पसरा है “सत्य-संशय” का खेल ! हालांकि  इन सबके बीच कुछ भक्त  कपाल , कपालेश्वर की इस लीला को समझ रहे हैं पर समझाने की कूबत नहीं हासिल कर पा रहे !

ख़ैर ! कुछ भी हो, पर आज पूरे स्थली (“बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड”) का पूर्ण-जीर्णोद्धार व् पुनः-निर्माण तेज़ी से हो रहा है ! इसके अलावा ये भी माना जाता है कि अगर इस स्थली में कोई परिवर्तन या निर्माण होता है तो इसका असर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर होता है ! आज ये बात सबके सामने है, कि, समस्त जगत में परिवर्तन व् नवीनीकरण भी द्रुतगामी गति से हो रहा है ! प्रत्यक्षम किम प्रमाणं ! बावजूद मानने-ना मानने का आप सभी के पास सुरक्षित है ! लिहाज़ा……..मानो तो भगवान , और, ना मानो तो पत्थर !

नीरज वर्मा

प्रबंध सम्पादक

इस वक़्त

 

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