बाबा कीनाराम जी -भाग 5

अघोर-परम्परा में पहला अघोरी भगवान शिव को माना जाता है और ये (अघोर) परम्परा तभी से चलती चली आ रही है। मान्यता रही कि हर काल में शिव अपने मानव-तन के ज़रिये अघोर-रुप में पृथ्वी पर निवास करते रहे हैं । आदि-अनादि कालीन तपोस्थली और अघोर-परम्परा के विश्व-विख्यात हेडक़्वार्टर, ‘क्रीं-कुण्ड’ (जिसे ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है), के बारे में शोधकर्ताओं का मानना है कि ये स्थान भगवान् शिव के सूक्ष्म या स्थूल क़ाया की आश्रय-स्थली है । हालांकि बीच में एक ऐसा वक़्त भी आया जब  तक़रीबन कई शताब्दियों तक अघोर-परम्परा सुसुप्तावस्था में भी रही । लेकिन 16 वीं शताब्दी में सदाशिव ने पृथ्वी पर एक बार फ़िर स्थूल संग आगमन किया । भगवान् शिव की स्थूल काया के नाम-रुप में विश्व-विख्यात महान संत अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी को अघोर-परम्परा को पुनर्जागृत किया । अघोर-परम्परा के आधुनिक स्वरुप का अधिष्ठाता-प्रणेता-आराध्य-मुखिया-ईष्ट बाबा कीनाराम जी को ही माना जाता है । 

बाबा कीनाराम जी के जीवन-सफ़र के बारे में पांडुलिपियों में जो संक्षिप्त जानकारियाँ हैं, उन पर आधारित एक क़िताब है – ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ । अघोर-परम्परा के बारे में बेहद विश्वसनीय दुर्लभ क़िताबों को लिखने वाले आदरणीय (स्वर्गीय) विश्वनाथ प्रसाद सिंह अस्थाना जी ने ही बड़ी मेहनत से (बाबा कीनाराम जी के जीवन से जुड़े) प्रसंगों को एकत्रित कर तथा हाथ से चित्रों का काल्पनिक स्केच बनाकर  ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ नाम की इस पुस्तक को जीवंत रुप में लोगों के सामने रखा ।  चूँकि ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ में संकलित अंश बहुत ज़्यादा हैं, लिहाज़ा हमने इसे 5 भागों में बांटने का फ़ैसला किया । यहां पेश है , भाग-5 ……    

21 क्षिप्रा नदी पर बादशाह औरंगजेब को फटकार:- अघोराचार्य महाराजश्री के दरबार में राजा हो या रंक, सभी पहुँचते थे और बाबा कीनाराम जी हर किसी को आशीर्वाद देने के साथ-साथ मानव बनने की ओर अग्रसर होने के लिए भी कहा करते थे। इसी कड़ी में एक बार क्षिप्रा नदी के तट पर महाराज श्री रह रहे थे । वहीं पास में बादशाह औरंगजेब अपनी सेना के साथ डेरा डाले हुए था । उसे पता चला कि बाबा कीना राम जी भी यहीं पास में ही निवास कर रहे हैं । औरंगजेब बाबा कीनाराम जी के दर्शन के लिए, नदी किनारे, उनके पास पहुंचा । महाराज श्री कीना राम जी ने औरंगजेब द्वारा किये जा रहे अत्याचारी कार्यों को बंद करने के लिए पहले उसे समझाया और अन्त में उसे फ़टकारा  कि तुम्हारे अमानुषिक के लिए इतिहास तुम्हें माफ़ नहीं करेगा और तुम्हारी ही सन्तान तुम्हे प्रताड़ित करेगी और तुम्हे पश्चाताप करना पड़ेगा । इतिहास गवाह है कि आगे चलकर ऐसा ही हुआ ।

22 मुगलों के दमन से त्राण: – बाबा कीनाराम जी के समय मुग़ल शासकों का विस्तार हो रहा था हिन्दू आबादी को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा था । इसी कड़ी में महाराज श्री …. कोहलीन नगर में पहुंचे। इस नगर को मुसलमानों की मदद से पिण्डारियों द्वारा लूटा जा रहा था,  ध्वस्त करने के बाद जलाया  जा रहा था  …… लोग बेघर हो गए थे …भाग रहे थे … बूढ़े, औरतें, अस्वस्थ तथा बच्चे भूखों मर रहे थे । महाराज श्री बाबा कीनाराम जी ने इन ज़रुरतमंदों की सेवा कर इन लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की तथा साथ ही साथ इनके लिए घर भी निर्मित कराए और इनमें विश्वास जगाया । अत्याचार के मारे भाग गये लोग वापस आए। महाराजश्री ने मांग-मांग कर इन लोगों के लिए भोजन, वस्त्र तथा कृषि साधन को मुहैया करायाऔर अन्त में आर्शीवाद दिया ……. “स्वस्थ रहो, जब विपत्ति हो याद करना मैं उपस्थित होता रहूंगा” ।

23- अद्भुत महा प्रयाण:- दुनिया के महानतम संतों में सम्भवतः बाबा कीनाराम जी और अघोरेश्वर महाप्रभु जैसे एक्के-दुक्के ही एक ऐसे संत रहे हैं जिन्होंने समाज के बीच में रहते हुए अपनी अद्भुत-अविश्वसनीय आध्यात्मिक आभा से से न सिर्फ़ लाखों लोगों का उद्धार किया बल्कि मानवीय मूल्यों के प्रति भी लोगों को जागरूक किया और ये साफ़ सन्देश दिया कि मानव-सेवा ही ईश्वर की पूजा है ।


अपने 170 साल के नश्वर शरीर में रहते हुए अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी हमेशा इसी रास्ते पर चले। आख़िरकार वो समय भी आया जब बाबा कीनाराम जी ने अपने नश्वर शरीर को त्याग देने का मन बनाया । 1771 में महाराज श्री कीना राम जी ने सभी वर्ग से जुड़े अपने भक्तों को बुलाया और उनसे कहा — “ऐ मेरे स्नेह के भाजन भक्तों, शिष्यों, राजकुमारों, मेरे इस नश्वर पार्थिव शरीर को हिंगलाज देवी के यंत्र के समीप पूर्वाभिमुख स्थापित करना । समय-समय पर मेरे पार्थिव शरीर के सन्निकट हिंगलाज देवी के यंत्र की जो परिधि प्रार्थना करेगा फलीभूत होगा”। भक्तों को इतना सम्बोधित करने के बाद महारजश्री ने हुक्का पिया और हुक्का पीते   ही भूकम्प जैसी बड़े जोर की गर्जना हुई, आकाश में बिजली  चमक उठी । गुरुदेव महाराज श्री कीना राम जी के ऊर्ध्व रन्ध्र से तेज प्रकाश निकला और ब्रह्माण्ड को छेदते हुए विचित्र वाद्य नादों की गूंज के बीच, आकाश में विलीन हो गया । सभी करुण वेदना से बिलखने लगे, आँखों में आंसू लिए भक्त कहने लगे “हमें भी ले चलो-हमें भी ले चलो ” .! तभी आकाश से आवाज आई — व्याकुल न हो। ‘क्रीं कुण्ड’ में  स्थित हिंगलाज देवी के यंत्र की परिधि में चिताओं की लकड़ी से जलती हुई अखण्ड धूनी के सन्निकट सदैव एक रुप से मैं रहूंगा  । करुणा का त्याग करो- स्वस्थ मन होकर देखो । इसके बाद क्षण मात्र के लिए उपस्थित भक्त समुदाय को लगा कि  एक लम्बी भुजा सबके मस्तक को स्पर्श करते हुए ऊपर उठी और विलीन हो गई।

24. पार्थिव शरीर को समाधि में स्थापित किया जाना :- महाराजश्री का पार्थिव शरीर अब समाधि की तैयारी में था।  दिन हो चुका था ।  । भक्तों, श्रद्धालुओं द्वारा पुष्प वर्षा की जा रही थी । पुष्पों के अम्बार और सुगंधित द्रव्यों से स्थल के विचित्र वायु मंडल में माधुर्य फैल गया था । अब , पुष्पों के पराग के बीच हिंगलाज देवी के यंत्र की परिधि में  महाराज श्री बाबा कीना राम जी के पार्थिव शरीर को स्थापित किया जा रहा था ।

तभी एक बार पुन: आकाश से आवाज आई “प्रिय भक्तों, प्रेमियों किसी भी समय किसी भी तरह के दैहिक, दैविक दुख का आक्रमण होने पर याद करोगे, मैं साथ दूंगा ! इस पीठ की 11 वीं गद्दी पर मैं पुनः बाल रुप में आऊंगा तो पूर्ण जीर्णोद्धार और नवीनीकरण होगा” ।

दर्शकों की जानकारी के लिए बता दें कि अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी इस पीठ के प्रथम पीठाधीश्वर रहेऔर वर्तमान में ‘क्रीं-कुण्ड’ की 11वीं गद्दी चल रही है और वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी ही बाबा कीनाराम जी हैं , जो 10 फ़रवरी 1978 को बालरुप में ही इस पीठ के 11 वें पीठाधीश्वर के रुप में विराजे। तब से लेकर अब तक इस स्थल के साथ-साथ पूर्ण संसार के जीर्णोद्धार व् नवीनीकरण का कार्य ज़ोरों पर है।  धन्य है शिव स्वरुप अघोराचायर्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी के तब और आज का रूप । कोटि-कोटि नमन ।

बाबा कीनाराम जी के जीवन से जुड़े जीवन-सफ़र के संक्षिप्त विवरण को हमने पांच भागों में बांटा है, और ये आख़िरी भाग है । बाकी के चारों भाग भी इसी वेबसाइट पर मौज़ूद हैं । ग़र,आप, इच्छुक हों तो पढ़ लें । 

प्रस्तुति 

नीरज वर्मा 

सम्पादक 

‘इस वक़्त’

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