ख्वाज़ा सबका राजा
हिन्दुस्तान एक ऐसा मुल्क़ है जिसे अध्यात्म और धर्म की दुनिया का पुरोधा माना जाता है ! एक ऐसा देश जिसे साधू-महात्माओं-फ़क़ीरों की अविश्वसनीय दुनिया का सरताज़ कहा जाता है ! यहाँ के साधू-महात्माओं-फ़क़ीरों की औलौकिक और चमत्कारिक शक्तियों की मुरीद, पूरी दुनिया, सदियों से रही है ! इन्हीं में से एक नाम है…. आला दर्ज़े के फ़क़ीर- ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती का !
रौशनी से गुलज़ार ख्वाज़ा साहब का दरबार 
ख्वाज़ा साहब एक सूफी संत थे, जिनकी चमत्कारिक आभा से अभिभूत सारी दुनिया आज भी है ! यहाँ के चाहने वालों की माने तो यहाँ से खाली हाथ कोई नहीं लौटता ! क्या हिन्दू-क्या मुसलमान और क्या इसाई ! हर धर्म के लोग ख्वाज़ा साहब को मानते हैं ! ख्वाज़ा साहब के इतिहास का अध्ययन करने वाले जानकार बताते हैं कि….ख्वाज़ा साहब मुस्लिम-गैरमुस्लिम को जोड़ने वाले एक अद्भूत संत थे !भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर जिले में स्थित है- ख्वाज़ा साहब की दरगाह ! जहां, दुनिया के कोने-कोने से, हर रोज़ हज़ारों लोग सर झुकाने पहुँचते हैं-चादर चढ़ाते हैं और मन्नतें मांगते हैं !  मोईनुद्दीन साहब का जन्म कहाँ हुआ था , इस पर एकराय कोई नहीं हैं है, पर, माना जाता है कि ईरान और अफगानिस्तान के आस-पास का ही कोई इलाक़ा है ! कुछ लोग कहते हैं कि पूर्वी ईरान के सिस्तान नाम की जगह में , ख्वाज़ा साहब जन्में थे  और कुछ लोग अफगानिस्तान के हेरात शहर के नज़दीक, चिश्ती शहर को, उनका जन्म-स्थान मानते हैं  ! ख्वाज़ा साहब का जन्म 1141 या 1143 का है और दुनिया से पर्दा संभवतः 1236 या 1237 का ! कहा जाता है कि बचपन से ख्वाज़ा साहब का मन और बच्चों से इतर फ़क़ीरों की संगत में ही बीतता था ! किशोरावस्था में ही ख्वाज़ा साहब के पिता की मृत्यु हो गयी थी और विरासत में उन्हें बहुत कुछ मिला था , पर उनका मन सांसारिक मोह-माया की बजाय रूहानी-संगत में ज़्यादा था, जो वक़्त बीतने के साथ-साथ बढ़ता चला गया ! दीन-दुखियों की सेवा और हर किसी के आंसू पोंछना ही उनका एकमात्र मक़सद था ! ख्वाज़ा साहब को, लोग, कई नामों से याद करते हैं, मसलन…. “ख्वाज़ा ग़रीब नवाज़”, “ख्वाज़ा अजमेर शरीफ़”, “ख्वाज़ा-ए-हिन्द”, “सुलतान-उल-हिन्द” इत्यादि !
ख्वाज़ा साहब का सालाना उर्स 
इस्लाम का ख़ासा जानकार होने के अलावा, ख्वाज़ा साहब, एक बेहद सरल दिल इंसान और आला दर्ज़े के फ़क़ीर थे !
अध्यात्म के प्रति उनके गहरे रुझान ने ही उन्हें हिन्दुस्तान के प्रति आकर्षित किया और यहाँ का अजमेर शहर उनका रूहानी ठिकाना बना जिसका पता दुनिया में सबको मालूम है ! 
औलिया-परम्परा के ख्वाज़ा साहब को तुरंत द्रवित हो जाने वाले संतों में से एक माना जाता है! ऐसे सैकड़ों लोग मिल जायेंगें जिनका तज़ुर्बा आपको हैरान कर देगा ! ख्वाज़ा साहब के सालाना-उर्स में हर मज़हब के लोग बड़ी श्रद्धा और विश्वास  के साथ शामिल होते हैं !
अध्यात्म, विज्ञान को चुनौती नहीं देता लेकिन तजुर्बों का बयाँ इसे ख़ास बनाता है ! श्रद्धा-विश्वास-यकीं….ये सब निजी ख़यालात हैं, लिहाज़ा मानने-न-मानने का सर्वाधिकार आप सब के पास सुरक्षित है !
 
फ़ईम  
नई दिल्ली 

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