गर्जिया देवी मंदिर व् प्रतिमा
भारत के उत्तराखंड राज्य का नाम दिमाग में आते ही, ऊँची-ऊँची पहाड़ी चोटियाँ-झरने-घने जंगल-घुमावदार रास्ते और बहुत ही ख़ूबसूरत हिल-स्टेशन की तस्वीर नुमांया होती है ! लेकिन उत्तराखंड की ज़मीन का धार्मिक और आध्यात्मिक सरोकार सदियों पुराना है ! हिन्दुओं के चार-धाम में से बद्रीनाथ-केदारनाथ यहीं हैं ! मगर अभी हम आपको इस राज्य के नैनीताल ज़िले में मौज़ूद उस शक्ति-पीठ की तस्वीर पेश करेंगे जिसका पौराणिक महत्व रहा है और आज भी है ! नैनीताल ज़िला अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती के लिए दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है ! नैनीताल की वादियाँ, यंग कपल्स के लिए, तो किसी ज़न्नत से कम नहीं ! मग़र इस ज़िले के रामनगर क़स्बे में स्थित, ढिकुली क्षेत्र के, गर्जिया गाँव में स्थित गर्जिया देवी का मंदिर विख्यात है ! कुछ लोग इस मंदिर को गिरिजा देवी के मंदिर का नाम से भी जानते हैं ! नैनीताल से 75 और रामनगर टाउन-सेंटर से तक़रीबन 13 किलोमीटर दूर स्थित गर्जिया देवी के मंदिर में भारत के कोने-कोने से हज़ारों लोग, रोज़, यहाँ पहुँचते हैं ! विश्वविख्यात टाइगर-सफ़ारी, “जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क” से सटा ये मंदिर कोशी (कोसी) नदी के बीच में है !
गर्जिया देवी मंदिर का विहंगम दृश्य
एक ऊँचे पहाड़ के टीले पर स्थित इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है ! सर्वप्रथम 1840 में कत्युरी वंश के राजाओं द्वारा खोजे गए इस मंदिर के बारे में, 1940 से पहले तो, आम-लोगों को जानकारी थी ही नहीं ! घना-जंगल, ख़तरनाक जानवर और दुर्गम रास्ते, लोगों को इधर आने का साहस नहीं देते थे ! बाद में धीरे-धीरे लोगों को जानकारी होती गई और श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गई ! 1970 में इस मंदिर के जीर्णोद्वार के बाद, अब तो, यहाँ लोगों का तांता लगा रहता है ! कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर तो, यहाँ, दर्शनार्थियों की संख्या इतनी हो जाती है, कि, लाइन में 4-5 घंटे खड़े रहने के बाद ही क़रीब साधे-चार फ़ीट लम्बी माँ-गर्जिया की प्रतिमा का दर्शन हो पाता है ! मंदिर परिसर में ही गणपति जी, माँ-अनूसुया जी और बटुक भैरव जी भी विराजमान हैं ! माना जाता है कि, बटुक-भैरव जी के दर्शन के बिना माँ-गर्जिया का दर्शन पूर्ण नहीं होता ! कहा जाता है, कि, गर्जिया देवी कोई और नहीं बल्कि हिमालय की पुत्री और आदि-शक्ति माँ-पार्वती का ही रूप हैं ! इस मंदिर की खोज के बारे में कहा जाता है कि….इस क्षेत्र में तप-रत एक संत पुरूष को स्वप्न में ये पूर्व-सन्देश मिला कि इस क्षेत्र में अगले दिन भयंकर बाढ़ आने वाली है ! अगले दिन, हक़ीक़त में, उन संत ने देखा कि कोसी नदी में बाढ़ आयी हुई है और उस बाढ़ में एक विशाल पहाड़ी की चोटी भी बहती हुई आ रही है ! उन संत ने अपने तपोबल से उस चोटी को रोका और इस तरह से खोज हुई इस मंदिर की ! हालांकि (इस मंदिर के सन्दर्भ में) कुछ अन्य दंतकथाएं भी प्रचलित हैं ! आज का जो मंदिर है वो पुननिर्मित है ! 1956 में कोसी नदी में बाढ़ आने के चलते, यहाँ (पहले से), स्थापित प्राचीन-मूर्तियाँ बह गयीं थीं, लेकिन इस मंदिर से जुड़े रहे पंडित पूर्णचंद पाण्डेय ने अपने अथक प्रयास से इस मंदिर को नया रूप दिया !
पहाड़ी टीले पर स्थित गर्जिया देवी मंदिर
आज, यहाँ आने वाले श्रद्धालू पहले कोसी नदी में स्नान करते हैं और फ़िर धुप-अगरबत्ती-मालाफूल-प्रसाद लेकर क़रीब 80-90 सीढ़ी चढ़कर पहाड़ी टीले पर पहुँच, माता के, दर्शन करते है ! अपनी-अपनी मान्यताओं के मुताबिक़ लोग यहाँ प्रसाद चढ़ाते हैं ! कुछ लोग खिचड़ी, कुछ लोग मिठाई तो कुछ लोग सिन्दूर-चुनरी के साथ नारियल का चढ़ावा चढ़ाते हैं ! अन्य शक्ति-पीठ की तरह , नवरात्र के दिनों में, यहाँ पर भी बहुत भीड़ लगती है ! इस मंदिर का धार्मिक महत्व तो है ही, पर, यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है यहाँ की आबो-हवा और यहाँ का बेहद मनमोहक प्राकृतिक वातावरण ! झरने-पहाड़ और सटे हुए “जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क” से जंगली जानवरों की आवाज़ ! प्रकृति के बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ के बीच, नास्तिक भी आस्तिक सरीखा हो जाता है ! दिल्ली से क़रीब 300 किलोमीटर की दूरी, पहाड़ी इलाकों के चलते, थका भले ही देती हो पर कोसी नदी में स्नान और माँ-गर्जिया के दर्शन के बाद, लोग, खुद को बेहद तरोताज़ा महसूस करते हैं ! यदि आप नैनीताल जाते हैं और घूमने के अलावा धार्मिक क्रिया-कलापों में भी यकीं रखते हों तो यकीनन बेशुमार ख़ूबसूरती के बीच माँ-गर्जिया का दर्शन आप का मन मोह लेगा !
फ़हीम
नई-दिल्ली
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