अघोर के BOSS – Living GOD 

अगर आप अध्यात्म और धर्म में रुचि रखते होंगे तो इस बात से ज़रुर वाक़िफ़ होंगे कि ……  सृष्टि के आरम्भ से ही ……  हमारा देश हिन्दुस्तान, अध्यात्म और धर्म का वो महासागर है जहां नाना प्रकार के पंथ, संप्रदाय, पथ, मठ, साधू-सन्यासी और मान्यताऐं ….. भरपूर आस्था और विश्वास के साथ अपना डेरा जमाए हुए है । लेकिन विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों और धार्मिक आस्थाओं के बावज़ूद सभी इस बात पर एकमत हैं कि अध्यात्म या धर्म का सर्वोच्च बिंदू  शिवत्व पर जाकर समाप्त होता है।  यानि शिव से ऊपर कुछ नहीं यानि शिव ही सर्वोपरि हैं । सम्भवतः यही एक कारण है जिसके चलते सिर्फ़ और सिर्फ़ भगवान् शिव ही आस्था के ऐसे प्रतीक हैं जिनका अंत नहीं ….. यानि शिव अनंत हैं  ….. शिव अविनाशी हैं । भगवान् शिव को  इस संसार का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुप्रीम नायक माना जाता है । मानव-कल्याण के प्रतीक शिवलिंग पर आस्था और विश्वास का श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए देखना रोज़ाना की बात है । भगवान् शिव को देवों का देव …. यानि ….  देवादिदेव महादेव कहा जाता है । आरती पूजन में उन्हें औघड़-दानी शब्द से भी सम्बोधित करने का चलन आम है । लेकिन इन सबके बीच सवाल ये उठता है कि भगवान शिव को किसने देखा है ? ज़ाहिर है इस बारे में पौराणिक कथाऐं या किवदंतियां ही एकमात्र सहारा होती हैं । लेकिन मायावी दुनिया की शक्ल में मौजूद भौतिक और सांसारिक जगत में अध्यात्म और धर्म के सवाल पर एक ऐसा सर्वोच्च बिंदू आता है जहां पर सभी नतमस्तक हो जाते हैं।  जी हाँ, भगवान शिव से उत्पन्न अघोर-परम्परा को अध्यात्म और धर्म का सर्वोच्च बिंदू माना जाता है ।  ऐसा इसलिए , क्योंकि कहा जाता है कि भगवान् शिव का ही दूसरा रुप अघोर है जो इस मायावी संसार में मानवीय रुप में यदा-कदा अवतरित होता है ।

अध्यात्म और धार्मिक जगत में इस बात पर एक राय है कि दुनिया के पहले अघोरी भगवान शिव ही हैं । अध्यात्म और धर्म के मूल में आस्था और विश्वास रखने वालों से जब आप आध्यात्मिक और धार्मिक वैचारिक आदान-प्रदान करेंगे तो लगभग बहुसंख्यक हिस्सा इस बात पर अपनी सहमति जताएगा कि निश्चित तौर पर अघोर-परम्परा और अघोरी ही इस भौतिक संसार में भगवान् शिव का पर्याय बनकर, आज भी, उपस्थित है । अब यहां सवाल ये उठता है कि इस समय वो कौन है जो शिव के अघोर स्वरुप में मनुष्य तन धारण कर इस संसार में मौज़ूद है ? यानि वर्तमान में अघोर-परम्परा के संचालनकर्ता के तौर पर एकमात्र अघोरी हैं कौन ? शिव के अघोर रूप में वो कौन सी ऐसी इंसानी मूरत है जो इस समस्त संसार का संचालन बेहद गोपनीय तरीक़े से कर रही है ? शिव-स्वरुप में वो कौन सा मानवीय रुप इस पृथ्वी पर मौज़ूद है जिसे चलते फ़िरते शिव या लिविंग गॉड के रूप में मान्यता हासिल है ? दोस्तों ये कुछ ऐसे कठिन सवाल हैं जिनका जवाब दशकों लम्बे शोध के बाद ही मिल सकता है  ! धर्म और अध्यात्म की ज़मीन से सरोकार रखने वाला व्यक्ति इस सवाल का जवाब सिर्फ एक लाइन में ये कहकर देगा कि  —–   अघोरी तो सत्यम-शिवम-सुंदरम वाले शिव की जीती जागती मूरत होता है । अघोर-परम्परा और अघोरी के बारे में जानने के लिए अगर आप सनसनी फैलाने या दर्शकों को बेवकूफ़ बनाने वाले टेलेविज़न के पत्रकारों का सहारा लेंगें तो वो टी वी  पत्रकार आपको हर शमशान, गली-मोहल्ले में एक अघोरी खोज कर आपके सामने  पेश कर देंगे । हर गली-कूचे में एक शिव खड़ा कर देंगें  ! किसी भी विक्षिप्त व्यक्ति को जो उल-जूलूल हरक़त कर रहा हो, ख़ास तौर पर किसी वीराने या शमशान में, उसे टी वी  मीडिया वाले अघोरी बताने से नहीं चूकते

 हर गली-मोहल्ले में एक औघड़ या अघोरी खोजने वाले और दुनिया के सामने झूठ बोलकर आम आदमी को बहकाने का काम करने वाले राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया के सूत्रधारों पर अध्यात्म जगत से जुड़े लोग भी सख्त नाराज़ हैं ! अध्यात्म जगत के लोग मीडिया को अघोर/अघोरी का मतलब समझाते हुए राष्ट्री-अंतराष्ट्रीय-सोशल मीडिया के पत्रकारों/प्रस्तुतकर्ताओं की खोज को गलतबयानबाज़ी क़रार देते हैं । यहां तक कि 2017 में अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध न्यूज़ चैनल CNN के जाने-माने पत्रकार रेज़ा असलान , शमशान में किसी विक्षिप्त व्यक्ति के साथ मुर्दे का मांस खाते हुए दुनिया को ज्ञान दे रहे थे कि शमशान में मुर्दे का मांस खाने वाला शख़्स अघोर-परम्परा का चरित्र होता है ! यानि CNN का रेज़ा असलान नाम का ये नामचीन पत्रकार ख़ुद को अघोरी मान चुका होगा ! लेकिन ऐसा नहीं हुआ ! क्योंकि टेलेविज़न चैनल को सनसनी फ़ैलाने के लिए मसाला चाहिए  सनसनी और मसाले से भरपूर किरदार cnn के पत्रकार रेज़ा असलान ने, काशी में अघोर-परम्परा के हेडक़्वार्टर बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड में न जाकर, कहीं और अपने मन के मुताबिक़ और अपने चैनल की TRP बढ़ाने की ख़ातिर ढूंढ लिया था और दुनिया के सामने सफ़ेद झूठ और पाखण्ड को अघोर-परम्परा के रूप में पेश किया था ! यानी किसी परम्परा के हेडक़्वार्टर में न जाकर कहीं और उस परम्परा का मूल ढूंढना और बड़ा पत्रकार कहलाने का प्रचलन रेज़ा असलान जैसे – लोगों ने बड़ी गैर-ज़िम्मेदारी और बेईमानी से फैलाया है !  अघोर-परम्परा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले बौद्धिक तबक़े के कई लोग रेज़ा असलान जैसे कई बड़े-बड़े भारतीय-विदेशी चैनल्स के पत्रकारों की समझ और प्रस्तुति को नासमझी, गैर-ज़िम्मेदाराना प्रोफेशन और झूठ बोलकर बिज़नेस करने के तरीकों से जोड़कर देखते हैं ।
जो परम्परा भगवान् शिव से अविर्भावित है, उत्पन्न है …. उस परंपरा को विदेशी तो विदेशी, भारतीय पत्रकार भी, …… भयानक और वीभत्स तरीक़े से पेश करते हैं । ऐसे में आप और चकरा जाएंगे कि ये मायावी पत्रकार , वास्तव में पत्रकार हैं या जानकारी और आस्था के साथ खिलवाड़ करने वाली जमात का हिस्सा ? पत्रकारों की इस ग़लत बयानबाज़ी पर कई लोगों को, तल्ख़ भाषा के साथ , सख़्त ऐतराज़ है । पब्लिक को मूर्ख बनाकर अपने टेलीविजन की TRP में इज़ाफ़ा करने वाले पत्रकारों की ये जमात किसी ठग या फ्रॉड से कम नहीं होती । एक ऐसी जमात जो धर्म और अध्यात्म के नाम पर गलत जानकारी देकर अपने कारोबारी सरोकार को बनाए हुए है । जबकि एक आम आदमी भी जानता है कि शिव एक ही होता है , दस नहीं ।   तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इस पृथ्वी पर भगवान शिव के रुप की प्रतिलिपी के तौर पर वो कौन सी मानवीय क़ाया है , जिसके बारे में ज़मीनी शोधकर्ताओं और श्रद्धालुओं का साफ़ मानना है कि भगवान शिव की आरती के दरम्यान जिन औघड़दानी का ज़िक़्र होता है , वो ये हैं।  ये कौन ? आइये  इस सवाल का जवाब ढूंढते हैं ।
आइये चलते हैं  ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’  ।  जी हाँ, भारत के उत्तर-प्रदेश के वाराणसी जिले की रविन्द्रपुरी कॉलोनी में स्थित ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’  कोई आम जगह नहीं । पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा का हेडक़्वार्टर ! जी हाँ ! आदि-अनादि  इस स्थान का यही एकमात्र परिचय है ! कहा जाता है काशी में भगवान् शिव दो जगह निवास करते हैं , शिवलिंग के तौर पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ में और अघोर-परम्परा के विश्वविख्यात हेडक़्वार्टर ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ में साक्षात अघोर रुप यानि मानवीय काया में औघड़दानी स्वरुप में । शोधकर्ताओं और श्रद्धालुओं की निगाह में ये वही जगह है जहां से पूरे ब्रह्मांड का संचालन होता है और इस संचालन की बागडोर यहां के पीठाधीश्वर जी के हाथ में होती है । वो लोग जो दशकों से अघोर-परम्परा से जुड़े हैं और अध्यात्म को भौतिक लेन-देन की प्रक्रिया से अलग मानते हैं , बेबाक़ कहते हैं कि दुनिया में सृष्टि का संचालन एक जगह और चलते-फ़िरते शिव के द्वारा ही होता है वो भी प्रत्यक्ष , जिसे अनुभव किया जा सकता है। ऐसे लोगों ने अपने तज़ुर्बे और अनुभव से जो महसूस किया और जाना-समझा , उसे लोगों के सामने बख़ूबी रखते हैं ।
दोस्तों, यहां आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अघोर-परम्परा भगवान् शिव से अविर्भावित या उत्पन्न मानी जाती है और अघोर के वर्तमान स्वरुप का अधिष्ठाता-प्रणेता-ईष्ट -आराध्य जिन्हें कहा जाता है वो हैं 16 शताब्दी के महान संत अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम राम जी ! कहा जाता है कि भगवान् शिव ने जब मानव तन में अघोर-स्वरुप में इस धरा पर फ़िर से आगमन का फैसला किया तो नामकरण हुआ — बाबा कीनाराम । आज पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा के हेडक़्वार्टर ‘ बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ को न सिर्फ  अघोर-परम्परा के हेडक़्वार्टर के तौर पर जाना जाता है बल्कि यहां के  वर्तमान 11वें  पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी को साक्षात शिव या लिविंग गॉड का दर्ज़ा हासिल है ! आम आदमी तो आम आदमी , अघोर-परम्परा से जुड़े और इसी में रचने-बसने वाले तथा अघोर-परम्परा की साधनाओं-आस्थाओं को कई दशकों तक नज़दीक से समझने वाले औघड़ साधक-साधुओं का भी मानना है कि अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी सिर्फ़ मौख़िक या आधिकारिक तौर पर ही पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा के मुखिया नहीं , बल्कि जीवित जागृत महादेव हैं ! हम सब के महादेव हैं
अब ज़रा समझते हैं वर्तमान में चलते-फ़िरते शिव और लिविंग गॉड माने जाने वाले अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के अवतरण की घटना को  ! दरअसल, 1601 में जन्मे और 1771 में समाधि लेने के पूर्व अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी ने इस गद्दी  के 11वें पीठाधीश्वर के तौर पर अपने दुबारा आगमन की आकाशवाणी किया था और कहा था कि जब मैं इस पीठ की 11 वीं गद्दी पर बाल रूप में जब 11 वे पीठाधीश्वर के तौर पर आऊंगा तो अघोर की सर्वमान्य अघोर तपोस्थली स्थली ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’  के साथ साथ यानि सम्पूर्ण संसार का जीर्णोद्धार होगा। ! यानि वर्तमान 11 वे पीठाधीश्वर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी कोई और नहीं बल्कि स्वयं कीनाराम जी यानि शिव के जीवित जागृत अघोर स्वरुप हैं । 1771 में महाराजश्री बाबा कीनाराम जी की समाधिपूर्व आकाषवाणी के अनुसार उनके पुनरगामित वर्तमान स्वरुप अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के रूप व् नेतृत्व में आज इस अघोर तपोस्थली  ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ का पूरा स्वरुप नया हो चला है   गौरतलब है कि आदि-अनादि तपोभूमि  ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ को पुनर्जागृत कर बाबा कीनाराम जी ने इसे अघोर-परम्परा के  विश्व-विख्यात हेडक़्वार्टर पर स्थापित किया था और पीठाधीश्वर परम्परा की शुरुवात की थी और वो स्वयं इस पीठ के प्रथम पीठाधीश्वर के तौर पर स्थापित हुए थे और 1171 में समाधि लेने के पूर्व इस पीठ के 11 वें पीठाधीश्वर के तौर पर बाल रूप में अपने पुनरागमन की आकाशवाणी भी कर गए थे।
आप पाठकों के लिए बता दें कि वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी, मात्र 9 वर्ष की बाल आयु में, 10 फ़रवरी 1978 को, विश्वविख्यात अघोरपीठ  ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’  के 11 पीठाधीश्वर के तौर पर आसीन हुए थे । 9 वर्ष का बच्चा पूरी दुनिया में भगवान् शिव की अघोर-परम्परा का मुखिया ।  मात्र 9 साल का एक बच्चा ! जी हाँ, 10 फ़रवरी 1978 को अध्यात्म जगत की ये अद्भुत-अविश्वसनीय-अकल्पनीय घटना थी , जिस पर ध्यान बड़े-बड़े ऋद्ध-सिद्ध-साधू-महात्माओं-तपस्वीयों का भी नहीं गया ! जी हाँ,  सृष्टि के आरम्भ से ही स्थापित अघोर-परम्परा के इतिहास में ये आलौकिक घटना थी ! मानने न मानने का सर्वाधिकार आपके पास सुरक्षित है 
नीरज वर्मा 
सम्पादक
www.iswaqt.com
 

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