अयोध्या राम का नहीं ?

हिन्दुस्तान में 9 नवम्बर 2019, दिन शनिवार, ऐतिहासिक रहा । मुग़ल शासक बाबर के समय से ही ‘निर्वासन’ का दंश झेल रहे राम की अयोध्या में एक बार फिर से ‘वापसी’ हो गयी । राम का ‘वनवास’ ख़त्म हो गया ! लेकिन इस पर ऐतराज़ है । जी हाँ,  मक्का-मदीना मुस्लिमों का और वेटिकन सिटी हमेशा से  ईसाईयों का रहा है और ज़ेरूशलम  पर पर ईसाईयों-यहूदियों-मुस्लिमों के अलावा कभी किसी और का हक़ हो ही नहीं सकता मानने वाले पाकिस्तानी और विदेशी मीडिया को राम की जगह, अयोध्या पर हिन्दुओं के हक़ को लेकर ऐतराज़ है । विदेशी मीडिया अयोध्या को राम की जन्मभूमि मानने में यकीन नहीं करता । यही कारण 9 नवम्बर 2019 को जब भारत की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने जब अयोध्या जन्मभूमि को, सबूतों के आधार पर, हिन्दू पक्ष को सौंप दिया और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए दूसरी जगह 5 एकड़ की ज़मीन देने का फैसला सुनाया तो पाकिस्तान सहित कई देशों के अखबारों और मीडिया माध्यमों ने, इस फ़ैसले को न्याय, मानने से इंकार कर दिया और इसे हिन्दुओं की जीत व मुस्लिमों की हार बताया ।

10 नवम्बर 2019 को ज़्यादातर पश्चिमी और पाकिस्तानी मीडिया ने इसे नरेंद्र मोदी और भाजपा के एजेंडे की जीत के रूप में पेश किया । आज़ादी के समय पाकिस्तान में रहने वाला 10% हिन्दू आज 1% क्यों हो गया , इस बात की चिंता कट्टर इस्लामिक देश पाकिस्तान और विदेशी मीडिया ने कभी नहीं की । लेकिन हिन्दुस्तान में आज़ादी के वक़्त 4% से आज 18% की आबादी वाले मुस्लिम वर्ग को लेकर पाकिस्तान और पश्चिम मीडिया चिंतित  है । ऐसा दोहरा नज़रिया क्यों, पता नहीं ।

भारत में ओवैसी जैसे तथाकथित मुस्लिम नेता सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से इत्तेफ़ाक़ न रखें तो ये समझ में आता है कि ये नेता मुल्क़ से ज़्यादा मज़हबी सोच में यक़ीन रखते हैं । लेकिन मीडिया भी अग़र ऐसी सोच रखने लगे तो क्या होगा ? पाकिस्तान या मुस्लिम देशों की मीडिया और वहाँ के पत्रकारों का नज़रिया तो समझ में आता है कि वो अपनी सोच को मज़हब से अलग नहीं करते और भारत में ओवैसियों की प्रजाति के ही हैं । मग़र पश्चिमी देश का मीडिया ? अयोध्या फ़ैसले पर अपनी ओछी और घटिया सोच से पश्चिमी मीडिया ने ये ज़ाहिर कर दिया है कि वेटिकन सिटी ,मक्का-मदीना और जेरुशलम तो ईसाई ,मुसलमानों और यहूदियों का बना रहना चाहिए लेकिन बाबर के आक्रमण और तमाम सबूतों के बावजूद अयोध्या हिन्दुओं का नहीं रहना चाहिए । जबसे भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है , दुनिया का जाना-माना मीडिया हाउस BBC (British Broadcast Corporation) तो हमेशा ही भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करता रहा है । BBC, ऐसा किसके इशारे पर कर रहा इसकी जांच ज़रूरी है

अब चलिए सबसे पहले देखते हैं कि इस्लामिक पाकिस्तान का मज़हबी मीडिया अयोध्या फ़ैसले को कैसे पेश कर रहा — पाकिस्तान का मशहूर अख़बार डॉन भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर नाख़ुशी जताते हुए ये नसीहत देता है कि “भारत का सुप्रीम कोर्ट अगर किसी भी पक्ष की तरफ़दारी नहीं करता तो बेहतर होता, क्योंकि इसका सम्बन्ध सांप्रदायिक सौहार्द से भी है” । अख़बार कहता है कि —  “इस फ़ैसले से भारत अब ये दावा नहीं कर पाएगा कि वो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक मुल्क़ है” । फैसले को बाबरी मस्जिद विध्वंस से जोड़ते हुए ‘डॉन’ लिखता है कि — “इस फ़ैसले से मुस्लिमों के बीच ये सन्देश जाएगा कि,भारत में, अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बहुसंख्यकों की हिंसा माफ़ है” ।


पाकिस्तान का एक दूसरा बड़ी संख्या में पढ़ा जाने वाला अख़बार द नेशन अयोध्या फ़ैसले की निंदा के लिए पाक़िस्तानी सीनेटर रहमान मलिक़ के बयान का सहारा लेता है । ‘द नेशन’ ने मलिक़ के उस बयान को प्रमुखता से छापा है जिसमें उन्होंने कहा है कि — “भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भेदभावपूर्ण है और RSS व् मोदी भारत के मुसलमान और पाकिस्तान का नुक़सान कर रहे हैं ।” हालांकि अख़बार ये साफ़ नहीं कर पता है कि भारत के मुसलमानों के नुक़सान का पाकिस्तान से क्या ताल्लुक़ है ? पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले एक अन्य महत्वपूर्ण अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अयोध्या फ़ैसले पर अपने नज़रिये के लिए ज़मियत उलेमा-ए -इस्लाम के मौलाना फ़ज़लुर रहमान को सहारा बनाया है । ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में फ़ज़लुर  रहमान भारत के सर्वोच्च न्यायालय की सोच को संकुचित बताते हुए इसकी निंदा करते हैं और कहते हैं — “भारत अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने में सफ़ल नहीं रहा” । ये तो रहा पाकिस्तान के कुछ बड़े अखबारों का नज़रिया ।


आइये अब देखते हैं कुछ बड़े अमेरिकी और ब्रिटिश अखबारों का अयोध्या उवाच — दुनिया के सबसे बड़े अखबारों में से एक द न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) सबूतों के आधार पर पूरी की गयी न्याय की इस प्रक्रिया को मज़हबी चश्मे से देखते हुए कहता है कि —  “अयोध्या मामले पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुओं का पक्ष लिया“। विश्वस्तरीय कहा जाने वाला ‘NYT’ अपनी मज़हबी खोट और ओछी सोच को ख़ुलकर ज़ाहिर करते हुए इस फ़ैसले को नरेंद्र मोदी के हिंदुत्ववादी अभियान  से जोड़ता है और कहता  है कि — “इस फ़ैसले से नरेंद्र मोदी और उनके फ़ॉलोर्स को अपने हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे का विस्तार करने में सहूलियत मिलेगी” ।

अमेरिका का ही एक और विश्व-विख्यात न्यूज़ पेपर द वॉशिंगटन पोस्ट भी इस फैसले को न्याय के चश्मे से नहीं देखता बल्कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को नरेंद्र मोदी की जीत से जोड़कर देखता है । ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ के मुताबिक़ — “नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को इस फैसले से हिन्दू राष्ट्र के अपने एजेंडे का विस्तार करने में मदद मिलेगी” । अमेरिका के ही एक अन्य प्रसिद्द अख़बार द वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ)  इस फ़ैसले को कश्मीर और NRC जैसे मुद्दे से जोड़ते हुए लिखता है कि — “अयोध्या फ़ैसले को कश्मीर और NRC से अलग कर नहीं देखा जा सकता” ।

इसी तरह ब्रिटेन के जाने-माने अखबार द गार्जियन ने भी अयोध्या मामले पर आये फ़ैसले को न्याय के नज़रिये से देखने से परहेज़ किया । अखबार अपनी वेबसाइट में लिखता है कि “भारत की टॉप कोर्ट ने मुसलमानों द्वारा हक़ जताये जाने वाली जगह को हिन्दुओं को सौंप दिया” । ‘द गार्जियन’ का मानसिक दिवालियापन यहीं ख़त्म नहीं होता, बल्कि इस फ़ैसले को मॉब लिंचिंग से जोड़ता हुआ हिंदुत्ववादी साम्राज्य के विस्तार तक जाता है ।

यानि अयोध्या में राम थे या अयोध्या भगवान् राम की जन्मभूमि है, इस पर पाकिस्तान सहित अधिकाँश पश्चिमी देशों की मीडिया को शक़ था और अयोध्या में रामजन्मभूमि हिन्दुओं को सौंपे जाने के बाद उनका ये शक़ यक़ीं में बदल गया । सवाल फ़िर वही आकर टिक गया कि मक़्क़ा-मदीना मुस्लिमों का व् वेटिकन सिटी ईसाईयों का और ज़ेरूशलम यहूदियों-ईसाईयों-मुसलमानों का तो है लेकिन अयोध्या, राम की, जन्मभूमि या मातृभूमि नहीं हो सकती तो क्यों ? क्या राम का अस्तित्व अयोध्या से नहीं जुड़ा है ? जिस वाल्मिकी की रामायण के हिस्से को अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शामिल किया है , उसमें अयोध्या और राम का कनेक्शन साफ़ है । बावज़ूद इसके हम रामायण या राम के नाम पर पर नाक-भौं सिकोड़ें या इसे दरक़िनार कर दें तो इसे मीडिया का कट्टरवाद ही कहा जा सकता है ।

“राम का अयोध्या से कोई सम्बन्ध नहीं है लिहाज़ा अयोध्या पर इंडियन सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला संतुलित नहीं है”, ऐसा मानने वाले पाकिस्तानी और पश्चिम देशों के मीडिया समूहों को मज़हबी दिवालियापन से हट कर ये सोचना होगा कि मक्का-मदीना, ज़ेरूशलम और वेटिकन सिटी के अलावा अयोध्या भी आस्था, विश्वास  और सबूतों के साथ खड़ा है ।

इसकी तौहीन न करें । 

नीरज वर्मा
सम्पादक
‘इस वक़्त’

One Response to अयोध्या राम का नहीं ?

  1. Ram. Ram ji pramod Gupta says:

    Ram. Ram ji

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