अघोर-परंपरा के ईष्ट-आराध्य-मुखिया के तौर पर जाने जाने वाले बाबा कीनाराम और वाराणसी स्थित ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ का ज़िक़्र आते ही उस सदाशिव के मानव-तन और इनके निवास स्थान की छवि अपने-आप , मस्तिष्क में उभर आती है । बाबा कीनाराम जी को मैं साक्षात शिव इस स्थान को, उस साक्षात शिव का निवास स्थान मानता हूँ । बचपन से ही अघोर-परम्परा में बतौर भक्त-सेवक गुज़ारने के पश्चात ये मेरा दृढ़ विश्वास है । ये मेरा निजी भाव हो सकता है । लेकिन, अपने इस भाव की चर्चा, जब मैं, आध्यात्मिक-धार्मिक जगत की हस्तियों से करता हूँ , तो वो मुझसे पूर्णतः सहमति जताते हैं और मेरे भाव को महज़ भक्ति-भाव से ओत-प्रोत नहीं कहते । वो मेरे भाव को सत्य की कसौटी पर खड़ा पाते हैं । दुनिया-भर में अघोर-परम्परा में बाबा कीनाराम जी को आराध्य-ईष्ट का दर्ज़ा हासिल है और सृष्टि के समय से ही विद्यमान उनकी तपोस्थली ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ को, सर्वसम्मत्ति से अघोर-परम्परा का विश्विख्यात तीर्थ / हेडक़्वार्टर माना जाता है । इसके अलावा हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि धरा पर औघड़-अघोरेश्वर एक-दो ही रहते हैं और शेष सब साधू-साधक और श्रद्धालु की श्रंखला में ही अवस्थित होते हैं। ये और बात है कि औघड़ शब्द के आकर्षण से मिलने वाले सांसारिक लाभ को जान, साधू-साधक और श्रद्धालु, ख़ुद के नाम के आगे औघड़-अवधूत लगा लेते हैं।
स्थल का प्रवेश द्वार
बाबा कीनाराम जी पर आने से पहले कुछ आवश्यक चर्चा ज़रूरी है …. यूँ तो अघोर-परंपरा में हर रास्ते से चलकर अवस्थित हुआ जा सकता है, मग़र अध्यात्म जगत के बड़े हिस्से को कीनारामी-परम्परा में ज़्यादा सहजता व् विश्वसनीयता नज़र आती है । कारण है कि अध्यात्म के बड़े स्थानों में शुमार ज़्यादातर स्थान या तो सुसुप्तावस्था में चले गए या अनादर के चलते शक्तिविहीन होकर महज़ सांकेतिक रह गए हैं । 8वीं-9वीं शताब्दी से पहले ये स्थान (‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’) भी अज्ञात बनने की ओर अग्रसर था , मग़र बाबा कीनाराम जी के आगमन के पश्चात ये स्थान पुनः प्रज्वल्लित हो उठा । ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ एक विश्व-विख्यात तपोस्थली के रूप में हमेशा से ही विद्यमान था , ये स्थली आज भी दिन-प्रतिदिन अध्यात्म जगत की विभूतियों की प्रेरणा स्थली बनी हुई है और हमेशा ही रहेगी । बींसवी सदी के विश्वविख्यात महान संत , जिन्हें आम जनता ईश्वर का दर्ज़ा देती है, अघोरेश्वर भगवान् राम जी ने स्वयं कहा है कि — ” यह स्थान (‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’) तीर्थों का तीर्थ है और यहाँ हर पल बड़ी संख्या में ऐसी विराट आध्यात्मिक विभूतियाँ, हर-पल, मौजूद रहती हैं जो कई ब्रह्मनिष्ठ साधकों को एक ही साथ अलग-अलग जगहों पर एक साथ दर्शन देती हैं “।
बाबा कीनाराम स्थल धूनी व् बाबा कीनाराम जे की समाधि
अब बाबा कीनाराम जी की चर्चा की जाय तो अघोरेश्वर साहित्य के प्रसिद्द लेखक और अघोर-परंपरा के हेडक़्वार्टर में तीन पीढ़ियों को अपनी सेवा देने वाले आदरणीय स्वर्गीय श्री विश्वनाथ प्रसाद सिंह अस्थाना जी की बेहद विश्वसनीय क़िताब (‘अघोर एक दृष्टि में’) के पृष्ठ संख्या 15 पर लिखा है कि …. “सोलवहीं शताब्दी में उस काल-विशेष की मांग के अनुसार, सदाशिव को, जन-कल्याणायार्थ पंच्च तत्व का मानव-स्वरुप धारण करना पड़ा और तब उन्होंने अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी का नाम और रूप धारण किया” ।
सन 1601 में वाराणसी जिले की चंदौली तहसील ( जो अब स्वतंत्र जिले के रूप में स्थापित है) के रामगढ़ नामक स्थान में जन्मे, बाबा कीनाराम जी ने, अपने 170 साल के नश्वर शरीर में रहते हुए अपार जन-कल्याण किया । ढूँक्यों-निराश्रितों की सेवा की । शोषित की रक्षा की और शोषक वर्ग का बहिष्कार किया । समय-काल के हिसाब से अद्भुत-अविश्वसनीय-अकल्पनीय घटनाओं को अंजाम दिया । भारतवर्ष के कोने-कोने में घूम-घूम कर मानवता का सन्देश दिया। श्रद्धा-भक्ति से लबालब अनगिनत लोग , बाबा कीनाराम जी से, आशीर्वाद पाकर अपनी ज़िंदगी को खुशहाल बना लिए और कई लोग अपनी उद्दंडता-अशिष्टतता के चलते उनके क्रोध का भाजन भी बने । उनकी मर्ज़ी में वो प्रकृति निवास करती रही जो इस सृष्टि के संचालन हेतु ज़िम्मेदार है । “बाबा कीनाराम स्थल” को सुसुप्तावस्था से बचाने और हमेशा जागृत रखने हेतु , बाबा कीनाराम जी द्वारा, यहां पर पीठाधीश्वर व्यवस्था द्वारा स्थापित की गयी और बाबा कीनाराम जी यहाँ के प्रथम पीठाधीश्वर बने । किताब ‘अघोर एक दृष्टि में’ के पृष्ठ संख्या 34 के मुताबिक़ …. “1770 में जब बाबा कीनाराम जी ने अपने उस नश्वर शरीर का त्याग किया तो पूरी प्रकृति शोकाकुल हो उठी और समस्त प्राणी रोने लगे और तभी …. एक धमाका हुआ , आकाश लाल हो गया। बाबा कीनाराम जी की वाणी प्रस्फुटित हुई ‘मत, रो । विपत्ति के समय यहां आते रहना, निवारण होता रहेगा । यहां की ग्यारवहीं (11वीं) गद्दी पर मैं पुनः बाल रूप में आऊंगा और तब सब जीर्णोद्धार होगा’ । बाबा कीनाराम जी समय से चली आ रही एक लोकोक्ति “जो न करें राम – वो करें कीनाराम” औघड़-अघोरेश्वर के उस रूप को दर्शाती है जिसके बारे में अघोरेश्वर भगवान् राम जी ने कहा है कि …. “औघड़-अघोरेश्वर का प्रारम्भ वहां से होता , जहां से ‘सब’ थक-हार कर लौट चुके होते हैं” । यहां ‘सब’ का मतलब बड़े-बड़े ऋद्ध-सिद्ध, साधू-महात्माओं से है ।
स्वयं भगवान् शिव से अविर्भावित अद्भुत औघड़-अघोरेश्वर की परम्परा का कमाल देखिये । 10 फ़रवरी 1978 को यहां (‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’) के 11वें पीठाधीश्वर के रूप में बाबा कीनाराम जी पुनः पधारे । वो भी – बाल रूप में ही । इस बाल-रूप का नया नाम – अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम । 10 फ़रवरी 1978 को ये घटना घटी और हज़ारों-हज़ार लोगों ने देखा-सूना । मात्र 9 साल का बच्चा और पूरी दुनिया में अध्यात्म की सर्वोच्च गद्दी का मालिक़ ? जी, हाँ ! जी हाँ, ये बहुत ही अद्भुत घटना है । अविश्वसनीय है, अकल्पनीय है । मग़र , सत्य है । लोक अवाक रह गए , सन्न रह गए । अध्यात्म जगत की महान विभूतियाँ आश्चर्य में पड़ गयीं । लेकिन, फ़िर सबको बाबा कीनाराम जी वही आकाशवाणी याद आ गयी कि ….. “ग्यारवहीं (11वीं) गद्दी पर मैं पुनः बाल रूप में आऊंगा और तब सब जीर्णोद्धार होगा” । अब सबको इंतज़ार था कि क्या बाबा गौतम राम जी के नाम-रूप में स्वयं बाबा कीनाराम जी आएं हैं तो इस स्थान के साथ-साथ सम्पूर्ण जगत का भी जीर्णोद्धार, नवीनीकरण और कायाकल्प होगा ? लोगों के मन में चल रहे इस सवाल का जवाब भी लोगों को जल्दी ही मिलने लगा।
सन 2000 के बाद ये घटना भी शुरू हो गयी। जिस बाबा कीनाराम स्थल की कोई एक ईंट भी नहीं उखाड़ता और तोड़-फोड़ कर नया नहीं करवाता था, उस जगह पर जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ । हर महत्वपूर्ण स्थानों की गरिमा यथावत रखते हुए उन्हें नया स्वरुप दिया गया और जहां ज़रुरत पड़ी, वहाँ तोड़-फोड़ कर उस जगह नया निर्माण करवाया गया । आज इस स्थान पर तो जीर्णोद्धार और नवीनीकरण हो ही रहा है , साथ ही सम्पूर्ण जगत में एक नयी चेतना बाह रही है यानि सम्पूर्ण जगत भी जीर्णोद्धार और नवीनीकरण के दौर से गुज़र रहा है । जब से इस स्थली में निर्माण कार्य शुरू हुआ है, तब से, नज़र दौड़ाएं तो पता चलेगा कि, दुनिया में हर जगह परिवर्तन की बयार बह रही है। सृष्टि के पालक के रूप में सशरीर विद्यमान, साक्षात शिव तथा बाबा कीनाराम जी के पुनरगामित स्वरुप व् क्रीं-कुंड के पीठाधीश्वर अघोराचार्य सिद्धार्थ गौतम राम जी का दर्शन इतना आसान नहीं मग़र दर्शन होने के बाद उन्हें सदाशिव में अनुभव करना दुनिया के सर्वाधिक कठिन अनुभवों में से एक है । अंत में , मैं, इस पीठ और इस पीठ के सभी संत-महात्मा और कपालेश्वर-अघोरेश्वर वर्तमान 11वें पीठाधीश्वर, बाबा कीनाराम जी उर्फ़ बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी, के चरणों में चारों दिशाओं से नमन अर्पित करते हुए यहीं कहूंगा कि —–
” बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड — अद्भुत अविश्वसनीय, अकल्पनीय है “ ।
प्रेम नारायण सिंह उर्फ़ ‘नाना’
(नोट: लेखक इस स्थान से 14-15 साल की किशोरावस्था से ही जुड़े हैं और इस लेख के ज़रिये , अघोर के सन्दर्भ में , अपने 30 सालों के, अपने तज़ुर्बेको साझा कर रहे हैं । )
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