10 दिसंबर 2019 को भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा, में ‘नागरिकता संशोधन बिल’ पास हो गया । लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 मत पड़े , जबकि विरोध में सिर्फ़ 80 । इसके अगले दिन यानि 11 दिसंबर को ऊपरी सदन, राज्यसभा, में 125 वोटों के साथ इस बिल को पास कर दिया गया , क्योंकि विपक्ष में सिर्फ़ 99 मत पड़े । 12 दिसंबर 2019 को CAB (Citizenship Amendment Bill) भारत का एक क़ानून बन गया । ऐसा क़ानून जिसके चलते देश में बवाल मच गया । बवाल का कारण है, इस बिल का, मुख्य बिंदू- जिसके मुताबिक़- पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिन्दू-सिख-ईसाई-जैन-बौद्ध इत्यादि को तो, भारत में 6 साल निवास के बाद, भारत की नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन मुस्लिम धर्म के लोगों को नहीं ।
कॉंग्रेस सहित कई विपक्षी दल इसे धर्म के आधार पर भेदभाव क़रार दे रहे हैं और आर्टिकल 14 का उल्लंघन बता रहे हैं जिसमें जात-पात, धर्म सहित किसी भी आधार पर भेदभाव न करने की बात कही गयी है । विरोधी दल के नेतृत्व में असम सहित ज़्यादातर पूर्वोत्तर राज्य से लेकर दक्षिण में केरल और देश के कई हिस्सों में इस बिल का ज़बरदस्त विरोध हो रहा है । उधर इस बिल को पास करवाने और ‘नायक’ माने जाने वाले देश के गृहमंत्री, अमित शाह, इसे सही बताते हैं । अमित शाह का तर्क़ है कि — “जो मुसलमान भारत के नागरिक हैं, जब उन पर कोई आंच नहीं आ रही है तो लोग इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव क्यों बता रहे हैं” ? शाह स्पष्ट करते हैं कि — “भारत में जो मुस्लिम यहां के नागरिक हैं , वो हमेशा भारत के नागरिक रहेंगे, ऐसे में विरोध किस बात का और क्यों ?” । ये याद दिलाने पर कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले ग़ैर-मुस्लिम को भारत में 6 साल रहने के बाद अग़र नागरिकता दे दी जाएगी तो मुस्लिम धर्म के लोगों को क्यों नहीं ? इसके जवाब में अमित शाह याद दिलाते हैं कि — “धर्म के नाम पर बने इस्लामिक राष्ट्र — पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश, क्या इन मुस्लिम लोगों को अपने यहाँ शरण नहीं दे सकते ?”
इस्लामिक देशों में हिन्दू-सिख-ईसाई सहित अल्पसंख्यकों की दुर्दशा की तरफ़ इशारा करते हुए अमित शाह CAB को सही ठहराते हैं और पूछते हैं कि — “इन 3 इस्लामिक देशों, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश, में 50 साल पहले हिन्दू-सिख-बौद्ध-ईसाई 18-20% थे लेकिन इन पर इतने अत्याचार हुए कि आज ये 2% भी नहीं बचे, ऐसे में ये अपनी बहन-बेटियों की इज़्ज़त बचाने कहाँ जाएंगे” ? अपनी बात को तर्क़ पर क़सते हुए अमित शाह याद दिलाते हैं कि – “पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश इस्लाम राष्ट्र की सोच पर ही बने हैं, ऐसे में क्योंकि इनके मूल देश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश, में इन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ना नहीं दी जाती तो यहां के मुसलमान धार्मिक-प्रताड़ना के आधार पर, भाग कर भारत क्यों आएँगे ?
विपक्षी दल कहते हैं कि — “भारत में नागरिकता देने के मामले में धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता और ये संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है “। इस बाबत अमित शाह पूछते हैं कि — ” समानता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ जाकर ये विपक्षी दल मुसलमानों के हिमायती हैं और साथ ही तीनों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान) देश भी । लेकिन हिन्दू-सिख-जैन इत्यादि के हिमायती देश कौन ? जो हिन्दू-सिख-जैन और अन्य अल्पसंख्यक इन इस्लामिक राष्ट्रों में धर्म-मज़हब के नाम पर दशकों से प्रताड़ित किये जा रहे हैं, जिनकी बहू-बेटियों की इज़्ज़त धर्म के नाम पर लूटी जा रही है, उनका अपहरण कर उनका ज़बरन धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है, वो कहाँ जाएंगे “? ।
ये था CAB के समर्थन और विरोध में सत्ता-पक्ष और विरोधी दलों का तर्क़ , जिसे हम राजनीतिक कह सकते हैं । लेकिन अब हम बात करते हैं एक आम हिन्दुस्तानी के नज़रिये से । आम हिन्दुस्तानी की एक आम समझ ऐसी है — तीन देश — पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश, इस्लामिक राष्ट्र हैं । भारत का आम आदमी बख़ूबी जानता है कि ये देश लम्बे समय तक भारत का हिस्सा थे, लिहाज़ा हिन्दू-सिख आबादी इन देशों देशों में बहुत थी । इन तीनों मुस्लिम देशों में आज से 50 साल पहले हिन्दू-सिख या अन्य ग़ैर-मुस्लिमों की संख्या अच्छी-ख़ासी, 18-20 फ़ीसदी थी । लेकिन जैसे-जैसे ये देश इस्लामिक अवधारणा या मुस्लिम नज़रिये के तहत अपने-अपने मुल्क़ का संचालन करने लगे, इन देशों में हिन्दू-सिख या अन्य ग़ैर-मुस्लिम लोगों की दुर्दशा होने लगी । इनकी इज़्ज़त से छेड़खानी होने लगी, इनके धर्म से खिलवाड़ होने लगा । लिहाज़ा इन तीन इस्लामिक देशों में रहने वाला हिन्दू-सिख तबक़ा 18-20 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत पर आ गया । यानि इन तीनों देशों में अल्पसंख्यक 90 फ़ीसदी कम हो गए ।
भारत की सीमा से सटे इन तीनों इस्लामिक राष्ट्र के हिन्दू-सिख अल्पसंख्यक ये सोचने लगे कि अपनी इज़्ज़त और अपने धर्म का पालन करने के लिए हम कहाँ जाएं ? ऐसे में उनकी उम्मीद अपने मूल देश भारत से होने लगी । भारत में बढ़ती मुस्लिम आबादी और इन 3 मुस्लिम देशों में घटती अल्पसंख्यक आबादी पर भी आम आम आदमी की नज़र है । आम हिन्दुस्तानी ये भी जानता है कि आज़ादी के समय भारत के मुसलमानों की आबादी 3 करोड़ थी और अब 6-गुना बढ़कर 18 करोड़ हो चुकी है । आप को बता दें कि 18 करोड़ की जिस मुस्लिम आबादी को भारत के लोग अल्पसंख्यक कहते हैं, वो आबादी, दुनिया के आठवें सबसे बड़े देश के बराबर है । आम आदमी जानता है कि CAB पर ये सारा बवाल इस भारी-भरक़म दुनिया के आठवें सबसे बड़े देश की आबादी के बराबर भारत के मुसलमान नागरिकों को लेकर नहीं है, क्योंकि ये आबादी तो हिन्दुस्तान का हिस्सा है , वो यहां के नागरिक हैं । आम आदमी जानता है कि बवाल इस बात पर है कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिमों को भी , ग़ैर-मुस्लिमों की तरह, हिन्दुस्तान में 6 साल निवास के बाद नागरिकता मिलनी चाहिए । आम आदमी जानता है कि विपक्षी दल संविधान का हवाला तो देते हैं, लेकिन जब धर्म-मज़हब के नाम पर कश्मीर से हिन्दुओं को भगाया जा रहा था तो CAB पर बवाल करने वाले यही विपक्षी दल, उस वक़्त चुप्पी साधे बैठे थे ।
आम आदमी पूछता है कि इस्लामिक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश या कश्मीर में हिन्दुओं-सिखों की तौहीन हो तो चलेगा, लेकिन इन तीनों देशों के मुस्लिमों को भारत में भी नागरिकता मिलनी चाहिए ऐसा भारतीय संविधान की किस धारा में लिखा है ? आम आदमी ये भी पूछता है कि इन इस्लामिक राष्ट्रों में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर ये विपक्षी दल चुप्पी क्यों साधे रखे ? आम आदमी जानता है कि ये विपक्षी दल इस बात पर कोई सवाल सुनना नहीं पसंद करेंगे । आम आदमी ये जानना चाहता है कि इस्लामिक राष्ट्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का मतलब क्या होता है ? आम आदमी ये जानना चाहता है कि ख़ुद को इस्लामिक देश कहने वाले पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसख्यकों पर अत्याचार और उनकी दुर्दशा पर वहाँ के बहुसंख्यक समुदाय की उस चुप्पी का मतलब क्या होता है , जिसके तहत अल्पसंख्यकों की आबादी 15-20 प्रतिशत से घटकर महज़ 2 फ़ीसदी तक आ सिमटती है और लोग चुप रहते हैं । आम आदमी के उलझन भरे इन सवालों का जवाब कोई विपक्षी दल देने को राज़ी नहीं ! क्यों ? पता नहीं ।
यहूदी धर्म वाले इज़राइल जैसे छोटे से, लेकिन, बेहद ताक़तवर देश ने अपने संविधान में ये व्यवस्था कर रखी है कि दुनिया का कोई भी यहूदी, इज़राइल में, बसना चाहे तो उसका स्वागत है । ऐसा इसलिए नहीं कि इस देश में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है, बल्कि ऐसा इसलिए है कि ग़र किसी यहूदी के साथ दुनिया के किसी भी हिस्से में भेदभाव हो रहा हो तो इज़राइल में उसको बसने का अधिकार है । इसके अलावा एक सवाल ये भी कि भारत का बंटवारा किस आधार पर हुआ ? अगर धार्मिक आधार पर हुआ तो CAB का विरोध किसलिए ?
जब सारी दुनिया इस्लामिक-आतंकवाद का शिकार हो रही है और अपने-अपने देश की सुरक्षा को लेकर अपने देश की सुरक्षा और संविधान में बदलाव को लेकर सक्रिय है , ऐसे वक़्त में भारत के विपक्षी दल कहते हैं कि भारत का संविधान इस्लामिक या हिन्दू क़ायदे-क़ानून से नहीं चलता । ये विपक्षी दल सही कहते हैं लेकिन बड़ी चालाकी से इस बात को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि भारत का संविधान भारत की सहिषुणता-अक्षुणता को लेकर प्रतिबद्ध है और ऐसी स्थिति में कोई संशोधन या विरोधाभास सामने आते भी हैं तो राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र इसे सहजता के साथ स्वीकार या अनदेखा करना चाहिए । लेकिन अनदेखा नहीं भी करना चाहते तो ये सवाल लाज़िमी है कि फ़िर संविधान में संशोधन का अधिकार क्यों और किसलिए ?
तेजपाल शर्मा
संवाददाता
‘इस वक़्त’
नई दिल्ली
Nice Information ….. Thanks a lot.