अघोर-परंपरा के सर्वमान्य आचार्य बाबा कीनाराम जी को साक्षात शिव का दर्ज़ा हासिल है । मानव तन में उपस्थित बाबा कीनाराम जी की लोककल्याण की कथाओं के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक यात्रा का विवरण भी बहुत दिलचस्प है । भगवान् दत्तात्रेय जी और गुरु गोरखनाथ जी के साथ बाबा कीनाराम जी का एक प्रसंग काफ़ी चर्चित है । इस प्रसंग के चलते तभी से एक कहावत जनमानस में विश्व-विख्या है कि — “दत्त गोरख की एक ही माया, बीच में औघड़ आ समाया“।
अपनी यात्रा के दौरान, जब, बाबा कीनाराम जी (गुजरात राज्य के) जूनागढ़ में स्थित गिरनार पर्वत पर पहुँच कर साधनारत रहे तभी उन्होंने उन्होंने देखा कि आकाश-मार्ग से एक (हुक्के का छोटा रूप) चिलम चली जा रही है । बाबा कीनाराम जी ने अपनी शक्ति से उस चिलम को अपनी ओर खींच लिया और एक बार अपने अंदर कश लगा कर कहा — “जहां जा रही हो, जाओ” । बाबा कीनाराम जी द्वारा कश लगाने के बाद वह वह चिलम पूरी तरह ख़त्म हो गयी थी । वो ख़त्म हो चुकी खाली चिलम अपने गंतव्य, यानि, गिरनार पर्वत पर पहले से ही विराजमान भगवान् दत्तात्रेय जी के पास पहुँची , तो, उनका माथा ठनका ।
दरअसल ये चिलम, गिरनार पर्वत के पृष्ठ भाग में मौज़ूद, गुरु गोरखनाथ जी चिलम भर कर रोज़ दत्तात्रेय जी के पास भेजा करते थे । लेकिन गिरनार पर्वत पर उन दोनों के मध्य साधनारत बाबा कीनाराम जी के आगमन के पश्चात अब वो चिलम रोज़ खाली होकर दत्तात्रेय जी के पास पहुँचने लगी तो दत्त और गोरख़ को आश्चर्य हुआ कि (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में) दत्तात्रेय और गोरखनाथ के बीच में भरी चिलम को खाली करने की शक्ति और सामर्थ्य किसमें है ? दत्तात्रेय ने बैठे-बैठे गोरखनाथ को सन्देश भेजा कि पता लगाओ — “वह कौन योगी है. जो हमारी भी चिलम रोक सकता है, वो मिले तो उसे लेकर मेरे पास आना ?” गुरु-गोरखनाथ जी ने पता लगाया तो उन्हें संत कीनाराम जी का प्रथम दर्शन हुआ । गुरु गोरखनाथ ने बाबा कीनाराम को भगवान् दत्तात्रेय का संदेश दिया और बाबा कीनाराम से उनके पास चलने का आग्रह किया । दोनों लोग दत्तात्रेय जी के पास पहुंचे ।
बाबा कीनाराम जी को अपने सामने देखते ही भगवान् दत्तात्रेय ने मांस का एक लोथड़ा बाबा कीनाराम के सम्मुख फेंका । संत कीनाराम जी ने उसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया । दत्तात्रेय ने बाबा कीनाराम से कहा — “देखो वह दिल्ली का बादशाह जा रहा है “। बाबा कीनाराम ने कहा — “हाँ ! दिल्ली का बादशाह जा रहा है । वह काले घोड़े पर सवार है, उसका घोड़ा क़िले के पास पहुंच गया है (और ) अब वह क़िले के द्वार में प्रवेश कर गया है । ” यह सुनकर भगवान् दत्तात्रेय जी समझ गए कि बाबा कीनाराम जी को दूर-दृष्टि सहित सबकुछ हासिल हो चुका है । यह जान, भगवान् दत्तात्रेय ने, बाबा कीनाराम जी से कहा कि — “तुम्हें तो सब प्राप्त हो चुका है, अब यहां क्या करने आए हो ?” बाबा कीनाराम ने भगवान् दत्तात्रेय से कहा — “आप तीन मुंह लेकर यहां क्या कर रहे हैं ? इस अवस्था में आप लोक (संसार) के लायक नहीं रहे हैं ! एक मुंह के साथ काशी आइये, मैं, हरिश्चंद्र घाट शमशान पर आपका इंतज़ार करूंगा क्योंकि आप मेरे गुरु हैं ” । यह कहकर बाबा कीनाराम जी काशी चले जाते हैं । आध्यात्मिक जगत में इस घटना का ज़िक़्र हमेशा होता है ।
तब से ही गिरनार पर्वत पर उपस्थित तीन टीलों में से बीच वाले टीले का नाम औघड़ टेकड़ी (टीला) , बगल में उच्चत्तम टेकड़ी को दत्त टेकड़ी (टीला) जबकि इसके बगल वाली टेकड़ी (टीला) को गोरख टीला कहा जाता है ।
साभार : ‘संतत्रयी’
( नोट:– ‘संतत्रयी’ नामचीन शोधकर्ता व् विद्वान् डॉ. गया सिंह द्वारा आध्यात्मिक शोध पर आधारित एक विश्वसनीय क़िताब है )
जय बाबा कीनाराम जी
जय बाबा अवधूत भगवान राम जी
जय बाबा पीठाधीश्वर सिद्धार्थ गौतम राम जी
💐हर०हर०महादेव💐
🙏🏻💐 हर हर महादेव 💐🙏🏻