आध्यात्मिक जगत में संत अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी को उच्चतम दर्ज़ा हासिल है । जनकल्याण हेतु उनकी असीमित अध्यात्मिक आभा का मुरीद न सिर्फ़ आम आदमी है बल्कि बड़ी संख्या में विद्वान्, लेखक, शोधकर्ता, बुद्धिजीवी, जिज्ञासू भी है । ये वो तबक़ा है जो मानता है कि बाबा कीनाराम जी का सम्पूर्ण जीवन , आम आदमी की पीड़ा को दूर करने में ही बीता । आम आदमी के लिए वो, आज भी, ईश्वर का रुप हैं। अपने नश्वर शरीर के ज़रिये वो कुरीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते ही रहे । बाबा कीनाराम जी, साधू समाज के, उस वर्ग को फ़टकारते रहे और सत्य का बोध कराते रहे जो महज़ प्रवचन, पांडित्य और लफ़्फ़ाज़ी भरा था । राजा-रजवाड़ों की निरंकुशता और शोषण के ख़िलाफ़ भी मोर्चा खोले रहे । बाबा कीनाराम जी के जीवन और लोक-कल्याण की कई गाथाएं आज भी लोग श्रद्धा भाव से सुनते-सुनाते हैं । ऐसी ही एक कथा —-
जनश्रुति के अनुसार, काशी (वाराणसी) में, कवि-साधक, तुलसीदास की एक महिला भक्त हमेशा, उन्हें प्रसाद चढाने के लिए, श्रद्धा-भाव से उनकी सेवा में रहती थी । उस औरत को कोई संतान नहीं थी । काफ़ी दिनों तक सेवा करने के बाद उस औरत ने, अपने पूजनीय, तुलसीदास से संतान के लिए प्रार्थना की । तुलसीदास ने अपनी साधना के समय अपने ईष्ट -प्रभु से इसके लिए प्रार्थना की , मगर तुलसीदास के प्रभु-ईष्ट ने उस औरत को कई जन्मों तक संतान न होने का संकेत दिया ।
तुलसीदास ने उस सेविका को अपने प्रभु का संकेत बता दिया । सेविका दुःखी मन से वहाँ से निकल कर, रोते हुए, अस्सी व् शिवाला स्थान वाले रास्ते अपने घर की तरफ़ बढ़ रही थी । उसको रोता देख किसी ने कारण पूछा और फ़िर उसको सुझाव दिया कि शिवाला स्थित (औघड़ों की तपोभूमि) “‘क्रीं-कुण्ड’ में संत कीनाराम रहते हैं, तुम उनके पास जाओ और प्रणाम कर उन्हें अपना कष्ट बताओ, वह निश्चय ही तुम्हारा कष्ट दूर करेंगे” । कोई और सहारा न देखकर, वह महिला ‘क्रीं-कुण्ड’ स्थल की तरफ़ चल पड़ी । उसने देखा संत कीनाराम धूनी रमाए बैठे हैं । महिला ने बाबा कीनाराम जी को प्रणाम किया और अपना कष्ट बता कर रोने लगी । उसका कष्ट सुनते ही , अचानक, बाबा कीनाराम जी ने धूनी की जलती लकड़ी उठायी और चार-पांच बार उस महिला को दे मारा । अपने बदन पर लकड़ी की चोट झेलती हुई वह महिला डर के मारे वहाँ से भाग निकली ।
पर समय बीतने के साथ-साथ उसको चार-पांच पुत्र हुए । महिला ने तुलसीदास जी के यहां जाना बंद कर दिया था । कुछ वर्षों के बाद एक दिन वह महिला अपने समस्त पुत्रों के साथ अस्सी-घाट की ओर चली जा रही थी। सामने से तुलसीदास चले आ रहे थे । महिला के साथ बच्चों को देख कर तुलसीदास जी ने पूछा …. “ये किसके बच्चे हैं ?” महिला ने बाबा कीनाराम जी वाली घटना बता दी । तुलसीदास जी को बेहद आश्चर्य हुआ । संध्याकाल अपनी पूजा-साधना पश्चात तुलसीदास ने एकांत में अपने ईष्ट-प्रभु से प्रश्न किया — ” प्रभु, ये मैं क्या सुन और देख रहा हूँ ? आपने तो कई जन्मों तक इस महिला को संतान न होने की बात का संकेत दिया था ” । तुलसीदास का ये सवाल सुनकर उनके ईष्ट -प्रभु ने तुलसीदास से कहा कि — “पहले मुझे किसी ज़िंदा मनुष्य का मांस लाओ, तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा” । तुलसीदास सन्न रह गए । उन्होंने अपने प्रभु-ईष्ट से पूछा कि — “प्रभु, ज़िंदा मनुष्य का मांस लाना कैसे संभव है ?” प्रभु-ईष्ट ने कहा कि — “जाकर, इसका उपाय संत कीनाराम से पूछो” । अपने ईष्ट-आराध्य के आदेश को सुनकर संत तुलसीदास शिवाला स्थित ‘क्रीं-कुण्ड’ पहुंचे और कीनाराम जी के पास जाकर इसका समाधान पूछे । बाबा कीनाराम जी ने कहा — “भाई तुलसीदास ! इसका समाधान जानकार क्या करोगे ?” इतना कहकर बाबा कीनाराम जी ने अपने बदन से मांस के कई टुकड़े काट कर संत तुलसीदास को दे दिया और कहा — “ये ले जाकर, अपने, प्रभु को दे देना” । तुलसीदास ने प्रसन्न भाव से बाबा कीनाराम जी के शरीर के मांस के टुकड़े को ले जाकर अपने गुरु को दिया और कहा कि — ” ये रहा ताज़ा मांस, और, अब मुझे मेरे सवाल का जवाब दें प्रभु ! ” प्रभु ने कहा — “तुलसी, यह ताज़ा मांस तो तुम्हारे पास भी है, पर तुमने नहीं दिया। जैसे कीनाराम ने अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया, अगर, उसी तरह उसने उस महिला को भी संतान दे दिया तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? औघड़ संत कीनाराम रेख पर मेख मार सकता है, विधि का विधान बदल सकता है “। कहा जाता है कि अपने पांडित्व पर अति-विश्वास और औघड़ों के प्रति अन्यत्र भाव रखने वाले तुलसीदास आश्चर्य में पड़ गए, नतमस्तक हो गए ।
साभार : ‘संतत्रयी’
नोट:– (‘संतत्रयी’ नामचीन शोधकर्ता व् विद्वान् डॉ. गया सिंह द्वारा आध्यात्मिक शोध पर आधारित एक विश्वसनीय क़िताब है )
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