अघोर-परम्परा में पहला अघोरी भगवान शिव को माना जाता है और ये (अघोर) परम्परा तभी से चलती चली आ रही है । मान्यता रही कि हर काल में शिव अपने मानव-तन के ज़रिये अघोर-रुप में पृथ्वी पर निवास करते रहे हैं । आदि-अनादि कालीन तपोस्थली और अघोर-परम्परा के विश्व-विख्यात हेडक़्वार्टर, ‘क्रीं-कुण्ड’ (जिसे ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है), के बारे में शोधकर्ताओं का मानना है कि ये स्थान भगवान् शिव के सूक्ष्म या स्थूल क़ाया की आश्रय-स्थली है । हालांकि बीच में एक ऐसा वक़्त भी आया जब तक़रीबन कई शताब्दियों तक अघोर-परम्परा सुसुप्तावस्था में भी रही । लेकिन 16 वीं शताब्दी में सदाशिव ने पृथ्वी पर एक बार फ़िर स्थूल संग आगमन किया । भगवान् शिव की स्थूल काया के नाम-रुप में विश्व-विख्यात महान संत अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी को अघोर-परम्परा को पुनर्जागृत किया । अघोर-परम्परा के आधुनिक स्वरुप का अधिष्ठाता-प्रणेता-आराध्य-मुखिया-ईष्ट बाबा कीनाराम जी को ही माना जाता है ।
बाबा कीनाराम जी के जीवन-सफ़र के बारे में पांडुलिपियों में जो संक्षिप्त जानकारियाँ हैं, उन पर आधारित एक क़िताब है – ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ । अघोर-परम्परा के बारे में बेहद विश्वसनीय दुर्लभ क़िताबों को लिखने वाले आदरणीय (स्वर्गीय) विश्वनाथ प्रसाद सिंह अस्थाना जी ने ही बड़ी मेहनत से (बाबा कीनाराम जी के जीवन से जुड़े) प्रसंगों को एकत्रित कर तथा हाथ से चित्रों का काल्पनिक स्केच बनाकर ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ नाम की इस पुस्तक को जीवंत रुप में लोगों के सामने रखा । चूँकि ‘बाबा कीनाराम चित्रावली’ में संकलित अंश बहुत ज़्यादा हैं, लिहाज़ा हमने इसे 5 भागों में बांटने का फ़ैसला किया । यहां पेश है , भाग-3……
14– महाराज श्री कालू राम से मिलन:- शिवत्व का आभामंडल समेटे और मां हिंगलाज की प्रेरणा तथा आदिगुरु के निर्देश के बाद बाबा कीनाराम जी गिरनार, कश्मीर और दिल्ली होते हुए काशी के विश्वविख्यात महाशमशान हरिश्चन्द्र घाट पर आ पहुंचे जहां पहले से ही आदि गुरु दत्तात्रेय श्री बाबा कालू राम जी के नाम और रुप में बैठे मुर्दो की खोपड़ियों को चना खिला रहे थे । महाराज श्री बाबा कीना राम ने बाबा कालूराम जी रूप में आदिगुरु को पहचान लिया और उन खोपड़ियों को चना खाने से रोक दिया। बाबा कालू राम जी ने भोजन की इच्छा व्यक्त की। महाराज श्री ने गंगा से प्रार्थना की और तीन मछली गंगा नदी से निकल और उछल कर किनारे सुलग रही चिता की आग में भुन गई । इसी समय एक और घटना घटी । दरअसल, उस समय गंगा में बाढ़ आयी हुई थी, जिसमें एक लाश बहती हुई जा रही थी, बाबा कालू राम जी ने कहा मुर्दा जा रहा है, महाराज श्री ने कहा मुर्दा नहीं जिन्दा है . ऐसा कहकर बाबा कीनाराम जी ने उस लाश को आवाज़ दी । महारजश्री की आवाज़ सुनते ही मुर्दा किनारे आ गया । किनारे आने पर वो मुर्दा जीवित हो उठा और बाद में बाबा राम जियावन राम के नाम से विख्यात हुए ।
15– राघवेन्द्र सिंह द्वारा भूमिदान: – हरिश्चंद्र घाट पर हुए इस घटनाक्रम के बाद, बाबा कालू राम जी के साथ महाराज श्री बाबा कीनाराम जी, क्रीं कुण्ड पर आए , जो स्थान आज ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ के नाम से अघोर-परम्परा के विश्वविख्यात हेडक़्वार्टर के तौर पर पूरी दुनिया में विख्यात है । दोनों महान विभूतियों ने कुछ दिनों तक इसी परिसर में सत्संग किया और फ़िर “ये स्थान तीर्थों का तीर्थ है” जैसी कई गूढ़ बातों को बताने के बाद आदिगुरु दत्तात्रेय उर्फ़ बाबा कालूराम जी धुंए के रूप में बाबा कीनाराम जी में विलीन हो गए। उस वक़्त वह स्थान राघवेन्द्र सिंह नामक ज़मींदार के अधीन था । राघवेन्द्र सिंह ने लिखित रुप से इस भूखण्ड को महाराज श्री बाबा कीनाराम जी को दे दिया जिसके बाद वहाँ बाबा कीनाराम जी ने अपनी धूनी और झोपड़ी जिसे ग्रामीण भाषा में मड़ई कहा जाता है की स्थापना की ।
16– बाबा बीजा राम का आकाश विहार और चमगादड़ रुपी आत्माओं की मुक्ति : – अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी के समय में कई अद्भुत घटनाऐं घटीं जिनमें से एक घटना कुछ इस तरह की है —- एक समय क्रीं कुण्ड में बाबा कीनाराम जी की छट्ठी के रुप में मनाया जाने वाले छठ मेला पर बाबा बीजा राम जी सितारवादन करते हुए आकाश की ओर उठ चले । काफी ऊपर उठ जाने पर उनके शरीर से आग की लपटें निकलने लगी और फिर वो अदृश्य हो गए । कुछ समय के बाद आप जब दिखाई पड़े तो आपके शरीर पर बड़े-बड़े चमगादड़ लिपटे थे जिन्हें महाराज श्री बाबा कीनाराम जी के निर्देशानुसार इस परिसर में स्थित इमली के वृक्ष पर स्थान मिला । ये चमगादड़ इतने विशाल थे कि लोग अकस्मात् डर जाते थे। कहा जाता है कि ये लोग महान विभूतियाँ थे जो मुक्ति की तलाश में, बाबा बीजाराम जी के ज़रिये बाबा कीनाराम जी पास पहुंचे थे। कहा जाता है कि बाबा कीनाराम जी ने, बाल रुप में इस पीठ के ग्यारहवें पीठाधीश्वर के रूप में अपने पुनरागमन के समय इन लोगों की मुक्ति की बात कही थी । ये बात सत्य हुई जब ढाई सौ सालों से बाबा कीनाराम जी के पुनरागमन का इंतज़ार कर रहीं चमगादड़ के रुप में इमली के पेड़ पर लटकी ये महान विभूतियाँ साल 2001 से 2005 के बीच गायब हो गयीं । ग़ौरतलब है कि वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के बाल रूप में ही अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी का पुनरागमन हुआ है जिसकी पुष्टि कई शोधकर्ता व् खोजी-जिज्ञासु प्रमाणों के आधार पर पहले ही कर चुके हैं।
17– मैथिलों को उपदेश : – अपने भ्रमण के दरम्यान एक बार महाराज श्री बाबा कीना राम जी एक गदहे पर सवार होकर और साथ में एक बिल्ली लिए हुए बिहार राज्य के दरभंगा जिले में पहुंचे । इस इलाक़े में मैथिली ब्राह्मण ज़्यादा हुआ करते हैं जो तंत्र-परम्परा से भी ताल्लुक रखते थे । इन ब्राह्मणों से आमना-सामना होने के बाद आपने इन ब्राह्मणों से कहा कि —- भारत के पिछड़े वर्ग के लोग मांस मछली खाना पसन्द करते हैं और यदि आप लोग इस खान-पान से घृणा न करें तो हिन्दुओं की संख्या कम न होने पाएगी अन्यथा धर्म परिवर्तन से यह घटती जायगी। यह सुनकर मैथिल ब्राह्मणों को नाख़ुशी हुई । उन्होंने बाबा कीनाराम जी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा । बाबा कीनाराम जी ने अपने गदहे को आगे कर कहा कि पहले आप लोग इस गधे से शास्त्रार्थ करो। बाबा कीनाराम जी ने गदहे का कान उमेठा, जिसके बाद गदहा फर्राटे से वेद पढ़ने लगा । ब्राह्मणों को आश्चर्य हुआ । लेकिन फ़िर उन्होंने महाराजश्री से कहा कि— आप कोई और शक्ति प्रदर्शन करें तो हम आपकी बात मानें । महाराज श्री ने उनसे कोई कार्य मांगा ….. मैथिल ब्राह्मणों ने वहाँ पर एक मरे हुए हाथी को ज़िंदा करने को कहा । महाराज श्री ने अपने हाथ में ली हुई बिल्ली को हाथी पर डाल दिया जो उसी मृत हाथी में विलीन हो गई । हाथी ज़िंदा होकर खड़ा हो गया । यह देखकर सभी ब्राह्मण महाराजश्री के चरणों में नतमस्तक हो उठे। कहा जाता है कि तभी से मैथिल ब्राह्मणों के यहां मांस-मछली का सेवन होने लगा ।
क्रमशः …….
बाबा कीनाराम जी के जीवन से जुड़े जीवन-सफ़र के संक्षिप्त विवरण को हमने पांच भागों में बांटा है। बाकी के चारों भाग भी इसी वेबसाइट पर मौज़ूद हैं । ग़र,आप, इच्छुक हों तो पढ़ लें ।
प्रस्तुति
नीरज वर्मा
सम्पादक
‘इस वक़्त’
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