दुनिया की दो पाषाणकालीन क़ौम

दो हक़ीक़त – दो दुनिया

दुनिया में 2 कौम हैं ! अमीर-गरीब ! अमीर की सोहबत अक्सर, अपनी बिरादरी यानी पैसे वालों के साथ ही होती है ! कमोबेश यही हाल गरीब का होता है ! फर्क सिर्फ इतना भर – कि गरीब की मजबूरी होती है और अमीर सिर्फ एक आँख से देख पाता है ! “खुदा” ने इनायत की तो अमीर इसे अपनी किस्मत समझ बैठा और गरीब ने “उस” इनायत से बेपरवाह खून-पसीना बहाया तो मोहताज़ हो गया !…. “ऊपर वाले तेरा जवाब नहीं- कब दे क्या दे हिसाब नहीं… ” ! “खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान” ! पैसों से अमीर बने पहलवानों को गधा पसंद नहीं , उन्हें घोड़ों पर बैठने का शौक होता है ! अजीब बात है ! गधा, वो भी घोड़ों पर बैठा हुआ ! वाह रे गधे की किस्मत ! किस्मत-किस्मत का फेर है ! गधों को घोड़ों की किस्मत पर रश्क हो सकता है- घोड़ों को गधे की किस्मत देख- अश्क बहाना पड़ सकता है ! मामला 2  “कौम” का है ! और इंसानियत की बजाय “कौम” के लिए मर-मिटने की परम्परा पुरानी है ! कहते हैं कि पैसा आ जाने के बाद ज़मीन पर पैर रखने का रिवाज़ बहुत कम लोगों को मालूम है ! पर ये रिवाज़ इन दोनों कौमों को एक कर देता है ! बेहद आम और ख़ास रिवाज़ – दो गज ज़मीन और चार कन्धों का ! पर ज़िंदगी भर गफलत बनी रहती है कि- ख़ास तौर पर अमीर कौम में ! शायद कई एकड़ ज़मीन, बैंक बैलेंस और सैकड़ों कन्धों की ज़रुरत पड़े ! “काहे पैसे पे इतना गुरूर किये है- यही पैसा तो अपनों से दूर किये है” ! पर दूरी अच्छी लगती है – गलतफहमी की तरह ! ऊपर जाकर “खुदा खैर करे” !
किस्मत बुलंद है – फिर भी भरते हैं आह
वो दो रोटी भी खाता है तो कहते हैं वाह !
उसे पेड़ की छाँव भी मिले
तो कहते हैं कितना आराम है !
खुद बंद कमरों में- ए.सी. की हवाओं में
चिल्लाते हैं कि गर्मी हराम है !
जब दिल-दिमाग डोलने लगे
और पैसा बोलने लगे
तो समझ जाना मेरे दोस्तों
खुदा मेहरबान
और गधा पहलवान है !

फ़ईम 

नई दिल्ली

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