“ख़ुद्दार दिल को कैसे समझाएं”

जज़्बाती होना एक बात है, लेकिन उन जज़्बातों को अपने कार्मिक व्यक्तित्व में जोड़ देना सबसे अहम् बात है । कई मशहूर अधिकारियों, नेताओं, पत्रकारों, शायर-कवि या लेखकों से मिला, अच्छा लगा कि ये लोग कितना अच्छा लिखते, कितना अच्छा बोलते हैं । ऐसा किसी एक को देखकर नहीं, बल्कि कइयों को देखकर लगा । सार्वजजनिक तौर पर इनको मिलने वाले मान-सम्मान का गवाह भी बना । लेकिन जब-जब, मैं, इनमें से ज़्यादातर  के निजी व्यक्तित्व से रु-ब-रु हुआ तो घृणा सी हो गयी । लगा कि इन ज़्यादातर नामचीनों ने अपनी व्यक्तिगत सोच और उससे उपजी निजी ज़िंदगी को, सार्वजनकि स्थानों पर, मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा है । ज़्यादातर ऐसे ही मिले । ये तो अच्छा है कि आम पब्लिक इन जैसों के निजी व्यक्तित्व को कम ही जान पाती है । वरना इन तथाकथित ‘नायकों’ का मुंह स्याही या किसी और पसंदीदा रंग से रंग कर, सरेआम चौराहे पर, इनका फ़ोटू टांग देती

लेकिन सभी ऐसे ही हैं, ऐसा नहीं है । कुछ तो ऐसे मिले कि लगा कि ये आम आदमी की उम्मीद पर ख़रे उतरने वाले लोग हैं, समाज के आदर्श हैं। इन असली नायकों की समाज को शिद्दत से ज़रुरत है । ऐसे ही एक शख़्स  हैं – समरजीत सिंह ‘विशेन’ । बाहरी आवरण को देखें तो लोग इन्हें पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के एक तेज़-तर्रार पुलिस अधिकारी अधिकारी के तौर पर जानते हैं, ऐसा पुलिस अधिकारी जिसका अपराधियों में ख़ौफ़ है । लेकिनअंदरुनी आवरण बहुत संवेदनशील-जागरुक है ।

संवेदनशीलता की ये धारा मातृ-जन-गुरु सेवा से गुज़रती हुई एक जज़्बाती कवि और लेखक पर जाकर ख़त्म होती है । आज से 20 साल पहले, अपनी कर्तव्यपरायण पुलिसिया ड्यूटी से समय निकाल कर जब समरजीत सिंह ने अपनी 20 दिनों की अध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की थी, तो उन्हें एहसास भी नहीं था कि तक़रीबन 20 साल बाद 2019 में वो 20 साल पहले वाली यात्रा एक क़िताब की शक़्ल अख़्तियार कर लेगी । ‘जय गिरनारी’ क़िताब काशी से शुरु होकर, राजस्थान होती हुई, गुजरात में गिरनार तक और महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के कई ज्योतिर्लिंगों और मंदिरों का दर्शन करते हुए काशी में ही वापिस आकर समाप्त होती है । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा के मुखिया-ईष्ट-आराध्य, व् पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा के हेडक़्वार्टर (‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’) के वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के हाथों ही इस (‘जय गिरनारी’) पुस्तक का विमोचन हुआ था । इस पुस्तक में यात्रा के साथ अघोर-परम्परा का भी आंशिक ज़िक़्र है,  ख़ासतौर पर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का । अघोर-परम्परा को अध्यात्म की सर्वोच्च-परम्परा बताते हुए समरजीत सिंह का मानना है कि अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी न सिर्फ़ अघोर परम्परा के (पूरी दुनिया में) मुखिया-ईष्ट-आराध्य हैं, बल्कि वो स्वयं बाबा कीनाराम जी ही हैं ।

बाबा कीनाराम जी , (जिन्हें अघोर परम्परा के वर्तमान स्वरुप का प्रणेता-आराध्य-ईष्ट कहा जाता है) को साक्षात शिव का दर्ज़ा हासिल है और 1770 में उन्होंने अपने 170 साल के नश्वर शरीर को छोड़ते समय कहा था कि ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ के 11वीं पीठ (वर्तमान गद्दी) के पीठाधीश्वर के रूप में बाल-स्वरुप में , मैं, पुनः आऊंगा । इस बात की पुष्टि भी उनकी नवीनतम रचना में हुई है ।  इस तेज़-तर्रार पुलिस अधिकारी का मानना है कि ये शिव-स्वरुप औघड़-अघोरेश्वर-अघोरी ही समाज और इस सम्पूर्ण जगत का कल्याण कर सकते हैं । हाल ही में उन्होंने भोजपुरी भाषा में एक बेहद सुन्दर काव्य-रचना के ज़रिये अघोर-परम्परा के मुखिया बाबा कीनाराम जी के पुनरागमन और उनके पुनरगामित स्वरुप अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का ज़िक़्र किया है कि कैसे भगवान् शिव के मानव-रूप में पधारे बाबा कीनाराम जी, वर्तमान में दुबारा, बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के नाम-रूप में, पधारे हैं ।

बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी से, भोजपुरी भाषा में,  इस पुलिस अधिकारी ने जगत-कल्याण के निमित्त आव्हान किया है कि  — “जग क करें कल्याण- अघोरश्वर सरकार” । हिंदी में इसका अनुवाद करें , तो इस तरीक़े से पढ़ेंगे आप — “हे अघोरेश्वर, आप इस जगत का कल्याण करें” । इस शीर्षक वाली भोजपुरी कविता में की गयी तुकबंदी , पूरी दुनिया में अघोर-परम्परा के हेडक़्वार्टर (‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’) और यहां के वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के ज़रिये सम्पूर्ण जगत-कल्याण के ऊपर आधारित है । इस कविता को आप ध्यान से पढ़ेंगे तो बहुत कुछ समझ पाएंगें ।

 

अपने पुलिसिया कर्तव्य से सराबोर व् अघोर-परम्परा के ईष्ट से जनकल्याण की प्रार्थना करने वाले समरजीत सिंह के जज़्बात सिर्फ़ जन-कल्याण तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि जन्म देने वाली ममतामयी माँ को लेकर भी उनकी लेखनी खूब चलती है । “बचपन क पीरीतिया” नाम के शीर्षक वाली भोजपुरी कविता में वो जन्म देने वाली माँ के प्रेम में डूबे दिखते हैं ।

भोजपुरी में लिखी इस कविता में वो लिखते हैं कि — “सपना में देखनी रात माई क सुरतिया- फ़िर से जाग गईल बचपन क पीरीतिया” यानि हिंदी में इसे पढ़े तो इसका अर्थ होगा — “रात में सपने में माँ की सूरत देखा – तो याद आ गया बचपन का प्रेम” । जनकल्याण के साथ-साथ, माँ के प्रति अगाध प्यार को उन्होंने इस कविता में ख़ूब दिखाया है । इस कविता में ये कोशिश की गयी है कि बेटा कितना भी बड़ा हो जाए, माँ का प्यार उसे हर-पल सताता है । इस दुनिया में जिनकी माँ नहीं हैं , उन्हें रुलाता है ।

ख़ुद्दारी को बतौर हथियार इस्तेमाल करने वाले समरजीत सिंह कोई समझौतावादी नहीं है , लेकिन दुनियादारी के मौज़ूदा बाज़ार की रस्म को निभाने में उन्हें तक़लीफ़ होती है । “कौन हैं अपने और कौन पराये” के ज़रिये वो कुछ नसीहत भी देते हैं और उम्मीद से भी लबालब भरे हैं कि वक़्त बदलेगा

अपनी ख़ुद्दारी को लेकर बेहद सतर्क रहने वाले समरजीत सिंह , इस मतलबी दुनिया को लेकर हैरान से दिखते हैं । अपनी एक अन्य हिंदी रचना “कौन हैं अपने और कौन पराये” के ज़रिये परेशान से दिखते हैं, लेकिन किसी भी क़ीमत पर  “समरजीत नहीं बिकते हैं”  लिख कर साफ़ कर भी दिया ।

(बतौर हिंदी-भोजपुरी कवि) समरजीत सिंह की ये रचनाएं लोगों पर छाप छोड़ पाती हैं या नहीं, इसका पता तो पाठकों से ही चल पाएगा लेकिन इतना ज़रूर है कि “पुलिस-महक़मे का हर मुलाज़िम पुलिसिया अंदाज़ के अलावा ऊपर वाले की किसी और क़ायनात का मुरीद नहीं होता । पुलिस-महक़मे का हर मुलाज़िम बाज़ार में ख़ुद्दारी का सौदा करता है”–इस ख़्यालात को, समरजीत सिंह जैसे पुलिस-अधिकारी की संवेदनशीलता, झुठलाती है ।

 

नीरज वर्मा 

सम्पादक

‘इस वक़्त’

 

 

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