भारत की राजनीति में ज़मीन से 4 गज ऊपर रहने वालों को तवज़्ज़ो दिए जाने को लेकर आम आदमी निराश है । बाहुबलियों और धनपशुओं का बढ़ता वर्चस्व भी हताशा का ख़तरनाक़ पहलू है । प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तर्ज़ पर काम कर रहीं क्षेत्रीय पार्टियों से लोगों का मोहभंग हो चुका है , लेकिन एक सवाल के साथ , कि — वोट किसको दें ? विकल्पहीनता का पसारता मायाजाल आम आदमी को ही नहीं बल्कि लम्बी सियासी पारी खेलने वालों को भी डराता है । पर कुछ लोग उम्मीद बांधे हुए हैं । बिहार की राजनीति में जयप्रकाश नारायण, रामसुंदर दास और कर्पूरी ठाकुर सहित न जाने कितने ज़मीनी और खांटी समाजवादियों का साथ पा चुके औरंगाबाद जिले के खांटी समाजवादी संजय रघुवर, निराशा और उम्मीद के बीच में झूल रहे हैं । बड़ी शिद्दत के साथ, बिहार में, एक ज़मीनी तीसरे मोर्चे के गठन की फ़िराक़ में हैं । प्रख्यात समाजवादी रघु ठाकुर की ‘लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी’ के संभावित प्रदेश अध्यक्ष संजय रघुवर, ईमानदार वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था के पक्षधर हैं । रघुवर को उम्मीद है , बिहार की राजनीति में बदलाव का । आगामी विधानसभा चुनाव में इन्हें भरोसा है – पुराने ज़मीनी दिन के लौटने का ….. पेश है ‘इस वक़्त’ के सम्पादक नीरज वर्मा से संजय रघुवर की ख़ास बातचीत ……
*प्रश्न न. 1:-* आपकी राजनीतिक पारी लम्बी रही है, और, ज़मीनी राजनीति का ख़ासा तजुर्बा भी । अब तक के अपने सियासी सफ़र को ‘इस वक़्त’ के साथ साझा करें ?
*उत्तर:-* जीवन के शुरुवाती उल्लेख को, ग़र, मैं बचपन से शुरु करुं तो अपने नाना का प्रभाव मैं अपने जीवन पर देखता हूँ । नाना के निकटतम रहे समाजवादी नेता व् पूर्व विधायक, अवध सिंह का सानिध्य मिला और राजनीति को पहली बार बहुत क़रीब से देखने का मौक़ा मिला । 1980 में नाना के देहांत के बाद फ़ैसला लेने की ज़िम्मेदारी मुझ पर थी, लिहाज़ा सोच-समझ कर क़दम बढ़ाता गया। ज़मीन से जुड़े मुद्दों पर अपने तेवर सख़्त करता गया । एक समय, बिहार में, कॉंग्रेस के बाद सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दल, लोकदल, का औरंगाबाद जिलाध्यक्ष बना । इस भूमिका के चलते मुझे बिहार के नामचीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेहद नज़दीक रहने का अवसर हासिल हुआ । इस राजनीतिक सफ़र में मुझे हेमवंतीनन्दन बहुगुणा जी का पुत्रवत स्नेह मिला । उस सियासी माहौल में ज़मीनी लोगों को बड़ा सम्मान और बड़ी भूमिका बिना किसी गुणा-गणित के मिल जाया करती थी । अब ऐसा नहीं है । बावज़ूद इसके, आज की तारीख़ में, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रघु ठाकुर के अंदर (मैं) उन्हीं ज़मीनी नेताओं का अक्स पाता हूँ।
*प्रश्न न. 2:-* आपका व्यक्तित्व खांटी समाजवादी रहा है, कॉरपोरेट समाजवाद के इस दौर में हाशिये पर चले गए आप जैसे ज़मीनी लोगों की आज की राजनीति में क्या भूमिका हो सकती है ?
*उत्तर:-* देखिये जिस खांटी समाजवाद की आप बात कर रहे हैं, वो समाजवाद तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तर्ज़ पर परिवारवाद का शिक़ार हो चुका है, मर चुका है । निराशा बहुत है । कभी-कभी मैं ख़ुद हताशा की स्थिति में आ जाता हूँ । लेकिन आपको ये बता दूँ कि यही नकारात्मक स्थिति हमें लड़ने का हौसला देती है और साथ में उम्मीद भी , कि, ज़मीनी राजनीति के पैरोकार हम पर नज़र रखे हुए हैं और हमें मौक़ा ज़रुर देंगे ।
*प्रश्न न. 3:-* सुगबुगाहट है कि आगामी बिहार-विधानसभा चुनाव के पहले, रघु ठाकुर के नेतृत्व वाली , ‘लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी’ तीसरे मोर्चे का ताना-बाना बुन सकती है, ये बात कितनी सही है और ग़र सही है तो लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का, बिहार-चुनाव में, क्या प्रभाव हो सकता है ?
*उत्तर:-* देखिये,अगर आप रघु ठाकुर के नेतृत्व वाली ‘लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी’ की राजनीति का बारीक़ी से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इस पार्टी की जड़ें आज भी ज़मीन से जुडी हुई हैं । बिहार में, ये पार्टी, ज़मीनी सरोकार रखते हुए फ़िर से ‘सड़क से संसद तक‘ का नारा बुलंद करेगी , क्योंकि डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि – “सड़कें सूनी होने से संसद और विधानसभाओं के आवारा होने का ख़तरा बढ़ जाता है”। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी छोटे-छोटे दलों को एकजुट कर एक आदर्श विकल्प, बिहार की राजनीति में, देने की कोशिश करेगी ।
*प्रश्न न. 4:-* आप रघु ठाकुर से बहुत प्रभावित हैं , माना जा रहा है कि लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका आपको मिल सकती है । ऐसे में में रघु ठाकुर और संजय रघुवर की जोड़ी के बूते लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के विस्तार की क्या-क्या योजनाएं हैं ?
*उत्तर:-* देखिये मैं किसी व्यक्ति-विशेष से प्रभावित नहीं होता । दरअसल रघु ठाकुर का पूरा जीवन ही आदर्श राजनीति के सिद्धांतों पर चलकर संघर्ष में ही बीता । सिद्धांतों से कोई समझौता किये बग़ैर, रघु ठाकुर ने कई लोगों को प्रभावित किया । हम उनके नेतृत्व में बिहार में राजनीतिकरण के अराजनीतिकरण होने का पुरज़ोर विरोध कर , ज़मीनी कोशिशों के बल पर जनमानस को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे ।
*प्रश्न न. 5:-* बिहार में चार ( भाजपा, कॉंग्रेस, जनता दल (यू.) और राजद) पार्टी प्रमुख हैं ? इन चारों का अपना प्रभाव है मतदाताओं के बीच । लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी किन मतदाताओं को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकती है ?
*उत्तर:-* देखिये ये दल कहने को बिहार के प्रमुख दल हैं लेकिन जात-पात, बाहुबल के नाम पर वोट मांगकर राज करने वाली पार्टियां, बिहार की मूलभूत समस्याओं का निदान करने में कोई रुचि नहीं लेती । स्वहित और परिवारहित में डूबी इन पार्टियों से पब्लिक त्रस्त है , लेकिन लाचार भी । ऐसे में लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के रुप में मतदाताओं को एक बेहतर विकल्प मिलेगा ।
*प्रश्न न. 6:-* राजद और जद (यू.) प्रदेश में स्थापित पार्टियां हैं और भाजपा-कॉंग्रेस का हर जगह व्यापक राष्ट्रीय प्रभाव है । बावजूद इसके चारों दलों में असंतुष्टों की भरमार है । इन असंतुष्टों को लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी कैसे साधेगी ?
*उत्तर:-* देखिये किस पार्टी में कितने असंतुष्ट हैं और उनकी क्या योजना है , इससे लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है । ‘आयाराम-गयाराम’ छवि वाले नेताओं में पार्टी की कोई रुचि नहीं है । आज भी हर जगह ईमानदार और समर्पित लोगों की कमी नहीं है , ज़रुरत है तो बस एक मंच की जो ईमानदार और समर्पित कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर ख़रा उतरे। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी ऐसे लोगों में उत्साह भरेगी और उन्हें अपने साथ जोड़ कर एक नयी तस्वीर पेश करने की कोशिश करेगी।
*प्रश्न न. 7:-* आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी किन मुद्दों पर और कितनी विधानसभा सीटों पर अपनी किस्मत आज़मा सकती है ?
*उत्तर:-* बिहार में स्वास्थ्य-रोज़गार-शिक्षा जैसी व्यवस्थाएं चौपट हो चुकी हैं । अफ़सरशाही और भ्रष्टाचार अपने चरम पर है । भाई-भतीजावाद तो ख़ैर अपने दबदबे के साथ मौज़ूद है ही । फ़िलहाल तय नहीं है कि लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी बिहार में कितनी सीटों पर क़िस्मत आज़माएगी , लेकिन हमारी कोशिश होगी कि हम एक बेहतर विकल्प के साथ अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराएं ।
*प्रश्न न. 8:-* पिछले 2-3 दशकों से बिहार के लोगों का बड़ी संख्या में राज्य के बाहर पलायन हो रहा है । बिहार अग़र अपने IAS-IPS का राग अलापता है तो वो ये भी याद रखता है कि बाहर के राज्यों में सबसे ज़्यादा मज़दूर वर्ग भी बिहार से ही आता है ? इतनी विरोधाभासी तस्वीर को बदलने के लिए आप क्या कर रहे हैं या क्या करने का प्लान है ?
*उत्तर:-* आपका प्रश्न बहुत ही सटीक और प्रासंगिक है । बिहार में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन ये प्रतिभाएं तभी निख़र सकती हैं जब इनके लिए उपयुक्त वातावरण हो । प्रकृति ने बिहार को प्रचुर मात्रा में संसाधन दिया है । ये मात्रा इतनी ज़्यादा है कि, बिहार के लोगों की, रोज़गार सम्बंधित ज़रुरतें यहीं पूरी हो जाएं , लेकिन दुर्भाग्य से, लम्बे समय तक, बिहार शासन-प्रशासन की इसमें कोई रुचि नहीं रही जिसके चलते बिहार का आदमी बाहर पलायन करता है । लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी इस विषय पर गहनता से चिंतन कर रही है ।
*प्रश्न न. 9:-* संजय रघुवर जैसे लोगों को राजनीति का बौद्धिक और ज़मीनी चेहरा तो मान लिया जाता है, लेकिन कोई भी प्रमुख दल ऐसे लोगों को कोई शीर्ष भूमिका में तब तक नहीं रखता जब तक कि, इन लोगों की, ऊपर के लोगों से अच्छी सेटिंग न हो ? ऐसा क्यों होता है ? क्या जनता दल (यू.), राजद, कॉंग्रेस और भाजपा भी ऐसी ही पार्टियां हैं ?
*उत्तर:-* आपने बिल्कुल सही कहा कि हम जैसे लोगों की घोर-उपेक्षा सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में जमकर हो रही है , जिसका कारण है पार्टियों का परिवारवाद और धनपशुवाद पर आश्रित हो जाना । जब परिवारवाद और धनपशुवाद हावी हो जाए तो संजय रघुवर जैसे ज़मीनी नेताओं का क्या काम ? इन पार्टियों में कोई समर्पित कार्यकर्ता या सेवादार नहीं मिलेगा । ये पार्टियां कॉर्पोरेट घरानों की ग़ुलाम हैं । चुनाव लड़ने के लिए पैसा तो चाहिए होता है , लेकिन, आप ऐसे अमीर का चुनाव कीजिये जो ग़रीब को भी बराबरी का हक़ देने का जज़्बा रखता हो , जिसके ख़यालात ज़मीनी हों ।
*प्रश्न न. 10:-* अगर आम आदमी की बात करें तो आम आदमी ग्लैमर और प्रचार से ही ज़्यादा प्रभावित होता है ? अब तक की आपकी कोशिशों में आम आदमी का कितना बड़ा तबक़ा संजय रघुवर के क़रीब पहुंचा है ?
*उत्तर:-* ये देश लम्बे समय तक गुलाम रहा है और गुलामी की मानसिकता अधिकाँश लोगों में आज भी है । ज़मीन से जुड़ी अपनी सोच को दरक़िनार कर, ग्लैमर और प्रचार के आकर्षण में बंध कर राजनीतिक नेतृत्व का चुनाव करना इसी गुलाम सोच का परिचायक है । एक समय समाजवादी आंदोलन ने इस गुलाम मानसिकता से छुटकारा दिलाने का प्रयास किया था, लेकिन लम्बे समय तक सार्थक नहीं रहा । लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी इसी सार्थकता को पुनर्जीवित करने का प्रयास करेगी ।
*प्रश्न न. 11:-* भारत की राजनीति का सबसे सुखद पहलू क्या है, जो आपको खुश करता है और सबसे दुःखद पहलू क्या है जो आपको निराश करता है ?
*उत्तर:-* भारत में लोकतंत्र है , लिहाज़ा ये हमेशा उम्मीद बनी रहती है कि मुख्य-दलों के ताक़तवर लोगों के अलावा आमजनमानस को भी, पब्लिक, सर-आँखों-पर बैठा सकती है — असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत, (अविभाजित) आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन.टी.रामाराव, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल इसके उदाहरण हैं । सम्भवतः इसे आप भारतीय लोकतंत्र का सबसे सुखद पहलू क़रार दे सकते हैं । जबकि दुःखद पहलू तो तेज़ी से अपना विस्तार करते जा रहे हैं । मसलन- आम आदमी के शीर्ष पर पहुँचने की लगातार कम होती संभावना । पैसे और बाहुबल का लगातार बढ़ता प्रभाव । और …. सबसे चिंताजनक बात — शीर्ष पर बैठे लोगों द्वारा ज़मीनी लोगों/कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा ।
Good J