अघोरियों-का-तीर्थ

अघोर या अघोरी जैसे शब्द कान में गूंजते ही अजीबो-गरीब ख्याल आते हैं । शमशान, दारू, स्त्री-संग , चमत्कार , भय-विकृति और ना जाने क्या-क्या ! पर मजे की बात ये है कि-ज़ेहन में ये सारे सवाल बरसों पुराने मिथक पर आधारित होते हैं या फिर “काल-कपाल-महाकाल” जैसे भ्रामक सीरियल्स को देखने के बाद पैदा होते हैं । फिल्मकार और लेखकगण भी एक बार के दौरे में सब कुछ जान लेने का दावा कर बैठते हैं । जबकि हक़ीक़त ये है कि इस परम्परा को जानने और समझने के लिए एक अच्छा-ख़ासा वक़्त जाया करना पड़ता है , जो लोग करना नहीं चाहते । विडियो लिया , फोटो खींची और लिख दिया । अब तक ज़्यादातर टी.वी. सीरियल्स या मैगजीन , टी.आर.पी. या सर्कुलेशन के चक्कर में, इसी तरह का अधकचरा ज्ञान लोगों के सामने परोसते रहे हैं, लिहाजा, भ्रम बना रहना लाज़िमी है । ये सारे भ्रम एक पल में दूर हो जाते हैं, जब आप अघोर और दुनिया भर के अघोरियों के तीर्थ-स्थान विश्व-विख्यात पीठ बाबा कीनाराम स्थल (वाराणसी जिले के भेलूपुर थाना अंतर्गत शिवाला/ रविन्द्रपुरी कालोनी में स्थित) में जाते है और शिव-स्वरुप यहाँ के वर्तमान, 11 वें, पीठाधीश्वर 47  वर्षीय अघोराचार्य  महाराज श्री  बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी से रूबरू होते हैं ।

सदियों  पुराने इस अध्यात्मिक स्थान का महत्व पौराणिक काल से ही बना हुआ है । मान्यता है कि – यही वो स्थान है, जहां (परीक्षा के मद्देनज़र) राजा हरिश्चंद्र के पुत्र राहुल को सर्प-दंश हुआ था ! यही वो स्थान है , जहां महान सुमेधा ऋषी ने तपस्या की थी ! इसी जगह अघोर परम्परा के आधुनिक स्वरुप के जनक , अघोराचार्य  महाराज श्री बाबा कीनाराम जी ने समाधी ली ! इस जगह को परिभाषित करते हुए अघोराचार्य  महाराज श्री बाबा कालूराम जी ने कहा था- “ये स्थान सभी तीर्थों का तीर्थ है” !  इस स्थान की महत्ता के बारे में बींसवीं सदी के विश्व-विख्यात महान संत अघोरेश्वर भगवान् राम जी ने बताया- कि- “ये स्थान दुर्लभ है ! यहाँ अध्यात्मिक जगत की इतनी पुनीत आत्माएं हर पल निवास करती हैं , जो साधकों को इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कई जगह एक साथ दर्शन दे सकती हैं , ये स्थान सृष्टि की उत्पत्ति और समापन के साथ रहा है और हमेशा रहेगा, औघड़-अघोरी का प्रकृति पर सम्पूर्ण नियंत्रण रहता है , उनके द्वारा , भावावेश में आकर कुछ भी कह देने पर घटनाएं तत्काल घटनी शुरू हो जाती हैं  ” !  अलावा इसके, श्रद्धालु जनों की निगाह में- “ये स्थान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का  कंट्रोल रूम है , जिसकी चाभी यहाँ के पीठाधीश्वर के हाथ में रहती है ” ।

अब , आइये, नज़र डालते हैं अघोर के वर्तमान स्वरुप और समाज में फ़ैली भ्रांतियों के बारे में——भगवान् शिव (शिव का पर्यावाची औघड़ दानी भी है ) से अविर्भावित इस परम्परा  (अघोर) का ताल्लुक सृष्टि की उत्पत्ति से ही है । अवधूत, मलंग, परमहंस, औलिया, अघोरेश्वर, औघड़ जैसे कई नामों से प्रचलित , प्राचीन अघोर के वर्तमान स्वरुप का जनक, 16 वीं शताब्दी के महान अघोर संत अघोराचार्य  महाराज श्री बाबा कीनाराम जी को माना जाता है । ६-७वीं शताब्दी से सुसुप्तावस्था में पड़ी, अघोर परम्परा को बाबा कीनाराम जी ने पुनर्जागृत किया ।

सन 1601 में, तत्कालीन वाराणसी जिले की चंदौली तहसील (जो अब जिला बन चूका है) के रामगढ़ नामक स्थान में जन्में अघोराचार्य  महाराज श्री बाबा कीनाराम जी उच्च कोटी के महान संत रहे । अपने 170 साल के नश्वर शरीर में रहते हुए , उन्होनें कई असहाय, दुर्बल, पीड़ित लोगों को राहत पहुंचाई, व्यापक स्तर पर समाज-सेवा (जो अघोर परम्परा का मूल-धर्म है ) की । कई मुग़ल शाषक भी बाबा के आशीर्वाद के भागी बने । बाबा कीनाराम जी अत्यंत दयालु संत रहे , पर बेहद अपमानित अवस्था में कुपित भी हो जाते रहे !  कहा जाता है कि तत्कालीन काशी नरेश, राजा चेत सिंह, ने बाबा का बुरी तरह अपमान कर दिया । उद्धेलित हो, बाबा ने उन्हें श्राप दिया कि – “जाओ आज से तुम्हारे महल में कबूतर बीट करेंगें, तुम्हे महल छोड़ कर भागना पड़ेगा और तुम पुत्र-हीन  रहोगे” । उस वक़्त सदानंद (उत्तर-प्रदेश के द्वितीय मुख्यमंत्री डा.संपूर्णानंद के पूर्वज), जो राजा के निजी सचिव थे, ने बाबा से इस कृत्य के लिए माफी माँगी ! बाबा ने कहा कि- “जाओ जब तक तुम्हारे नाम के साथ आनंद लगता रहेगा , तुम फलो-फुलोगे” । इतिहास गवाह है कि ये घटनाएं घटी और सन 2000 तक काशी नरेश के यहाँ गोद ले-ले कर राजशाही चलती रही । 1770 इसवी में 170 साल की अवस्था में बाबा ने इस उद्घोष के साथ समाधि ली-कि– “इस पीठ की ग्यारहवीं गद्दी (11 वें पीठाधीश्वर) पर, मैं बाल-रूप में पुनः आऊंगा और तब इस स्थान सहित सम्पूर्ण जगत का जीर्णोद्धार होगा “ ! बाबा कीनाराम स्थल- क्रीम कुण्ड में स्थित बाबा कीनाराम जी की समाधि का दर्शन करने हर साल हज़ारों की संख्यां में लोग आते हैं ! ख़ास-तौर पर अघोर और तंत्र परम्परा  से जुड़ी अध्यात्मिक विभूतियाँ ।


वर्तमान, 11 वें, पीठाधीश्वर 47 वर्षीय, अघोराचार्य  महाराज श्री  बाबा  सिद्धार्थ गौतम राम जी के बारे में विद्वान् जनों और शोधकर्ताओं का स्पष्ट मानना है कि – 1770 में , अपनी समाधि के वक़्त बाबा कीनाराम जी ने जो उदघोष  (इस पीठ की ग्यारहवीं गद्दी ,11 वें पीठाधीश्वर के तौर, पर मैं बाल-रूप में पुनः आऊंगा) किया था – वो पूरा हुआ । गौरतलब है कि वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य  महाराज श्री  बाबा  सिद्धार्थ गौतम राम जी, मात्र ९ वर्ष की  अवस्था (10 फरवरी 1978) में इस महान पीठ के पीठाधीश्वर बने । एक बालक और सर्वोच्च अध्यात्मिक गद्दी का मालिकये अध्यात्मिक जगत की बड़ी और आश्चर्य में डाल देने वाली उन बड़ी घटनाओं में से एक है, जिस पर ध्यान किसी-किसी का ही  गयाअघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के रूप में, अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी ने ,पुनरागमन कर अपने उदघोष की पुष्टि कर दी है और सन 2000 में काशी नरेश श्राप मुक्त भी हो चुके हैं (इसकी पुष्टि  भी आप , इस चरम वैज्ञानिक युग में, कर सकते हैं ) । इसके अलावा इस स्थान का पूर्ण जीर्णोद्धार, आज, ज़ोरों पर है (आप जाकर इस बात की पुष्टि खुद कर सकते हैं ) । साथ ही सम्पूर्ण जगत की व्यवस्था,  करवट बड़ी तेज़ी से ले रही है ।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि कई अध्यात्मिक परम्पराओं को संजोये हुआ हिन्दुस्तान, सभ्यता और संस्कृति के लिहाज़ से, शानदार मुल्क है । अघोर उन अध्यात्मिक परम्पराओं  में से एक है । भगवान् शिव से अविर्भावित इस परम्परा (अघोर )  की विचित्र दास्ताँ है । चमत्कार, रिद्धि-सिद्धी, कौतुहल , सेवा । पर यकीनन एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि- पूरी दुनिया  में अघोरी एक्के-दुक्के ही हैं , और जो हैं वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपनी मुट्ठी में रख घूम रहे हैं । हां ! उनके बेहद गोपनीय क्रिया-कलापों को जान पाना नामुकिन है । थोड़ा-बहुत अनुभव, लगातार शोध और संपर्क के ज़रिये हो सकता है । अन्य सभी (जो खुद को अघोरी या तंत्र विद्या का प्रकांड विद्वान् समझते हैं या घोषित हैं ), इस पथ पर चलने वाले पथिक मात्र हैं ।

रिद्धि-सिद्धी , चमत्कार का खुलेआम प्रदर्शन करने वाले अघोरी नहीं होते और ना ही विकृति और भय के पोषक होते हैं । वर्तमान में, अघोर और दुनिया भर के अघोरी पथिकों के मुखिया अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी को देख कर आप इस बात की पुष्टि कर सकते हैं । एक आम युवक जैसे दिखने वाले, सरल-सौम्य-सहज और दया की मूर्ति अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का दर्शन करने और अपने कष्टों का निवारण करने दुनिया हेतु  भर से हर वर्ग के लोग बड़ी संख्या में आते हैं । अध्यात्मिक शक्तियों को परदे में रख अंजाम और  विज्ञान को बेहद सम्मान देने वाले, अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी- मानवता का सन्देश और समाज-सेवा के अलावा किसी बात को नहीं कहते । चमत्कार की चर्चा-मात्र  से ही वो चिढ़ जाते हैं । शिक्षा, साहित्य और आयुर्वेदिक दवाओं के विस्तार के ज़रिये बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी , विज्ञान को सबसे उपरी पायदान पर रख कर अंध-विश्वास को किनारे कर रहे हैं !  बीमार को डॉक्टर के पास जाने की सलाह देते हैं और विद्यार्थियों को नए-नए शोध और विज्ञान की नयी जानकारियाँ जुटाने  के लिए प्रेरित करते हैं ।

तंत्र को बहुधा , अघोर माने  वालों के लिए जानना बहुत ज़रूरी है कि – तंत्र, अघोर जैसे वट-वृक्ष की एक टहनी मात्र है । अघोर (अघोरी) हमेशा दाता की भूमिका में होता है और तंत्र याचक की भूमिका में । सीधी भाषा में – अघोरी वही ,जो  आदेश मात्र से विधि के विधान को बदल दे ! विधि का विधान बदल देना सिवाय  शिव के , किसी और  के बूते की बात नहीं । इसीलिए ये  बखूबी कहा जा सकता है कि – स्वयंभू अघोरी तो बहुत हैं पर सच्चा अघोरी सिर्फ एक या दो हैं । बकौल विश्वनाथ प्रसाद सिंह अष्टाना (अपने जीवन के 60 साल अघोर परम्परा को समझने के लिए गुज़ारने वाले और अघोर परम्परा से जुड़ी विश्व-विख्यात किताबों के प्रसिद्द लेखक  )- “अघोरी मदारी की तरह घूम-घूम तमाशा नहीं दिखाता और ना ही खुले-आम चमत्कारों को सरंक्षण देता है, पाखण्ड को लाताड़ता है और अंधविश्वास से दूरी बनाए रखने का यथा-संभव प्रयास करता है , चमत्कार के आकांक्षियों को निराश करता है, समाज की सेवा ही उसका एक-मात्र उद्देश्य होता है । ये और बात है कि –  समय-काल और परिस्थिति , सहज ही कई अविश्नीय घटनाओं के साक्षी स्वयं बन जाते हैं, जिन्हें आम-जन अदभुत चमत्कार के संज्ञा देते हैं ” ।

अघोरी समय-काल और प्रकृति के बनाए नियमों का उल्लंघन बेहद कठिन परिस्थितियों में ही करता है । समाज में मौजूद सु-पात्रों के ज़रिये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की  व्यवस्था को क्रियान्वित करता है । गोपनीयता का इतना घना आवरण रहता है -कि-ये बात समाज के सु-पात्रों को भी नहीं मालूम चलती ! पर अघोरी जो कहता है , वो घटता है । कहा भी गया है- जो ना करे राम , वो करे कीनाराम । अंत में चलते-चलते कह देना ज़रूरी है कि- विश्वास और अंधविश्वास में फर्क होता है । साथ ही , आस्था और विश्वास , पूरी तरह निजी मान्यताओं पर आधारित होते हैं ।

मानो तो भगवान् और ना मानो तो पत्थर !
(और भी बहुत कुछ ,,,,,,,,,,,,,शेष फिर कभी ! )

नीरज वर्मा 

सम्पादक

‘इस वक़्त’