स्वामी समर्थ का दुर्लभ चित्र
महान अध्यात्मिक संतों-फ़क़ीरों को अपने अन्दर संजोई भारतवर्ष की पावन धरती पर कई ऐसे संत-फ़क़ीर अवतरित हुए, जिनकी महान अध्यात्मिक आभा की चर्चा लोग आज भी महसूस करते हैं ! इन्हीं में से एक नाम है, स्वामी समर्थ जी महाराज का ! महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर पर महाराष्ट्र के ज़िला सोलापुर का एक क़स्बा है- अक्कलकोट ! सोलापुर रेलवे स्टेशन से क़रीब 42 किलोमीटर दूर, ये वही जगह है जहां आज भी, रोज़, अक्कलकोट स्वामी उर्फ़ स्वामी समर्थ महाराज जी की समाधि का दर्शन करने और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए हज़ारों लोग आते हैं !
अक्कलकोट स्वामीजी के जन्म-स्थान को लेकर कोई ठोस-प्रमाण नहीं है ! उनका जन्म व् जन्म-स्थान लगभग अनिश्चित सा है ! कुछ लोगों के मुताबिक़ वो आन्ध्र-प्रदेश के कुरनूल जिले के श्रीसेलम क़स्बे के निवासी थे और उनका वास्तविक नाम नरसिम्हा भान था ! जबकि कुछ लोग उन्हें भगवान् दत्तात्रेय का अवतार मानते हैं ! उनका एक और नाम – श्रीमद नरसिम्हा सरस्वती भी था ! एक शोध के मुताबिक़ स्वामी समर्थ का प्रकट-स्थान श्रीसेलम के कर्दालीवन क्षेत्र के नल्लामाला पहाड़ियों की चोटियों में स्थित “अक्कमा देवी की गुफाओं” नामक स्थान पर माना जाता है ! जबकि एक क़िताब, “श्री गुरुचरित्र” में उल्लेख है कि स्वामीजी 1458 में कर्दालीवन के इसी क्षेत्र में ही महासमाधि में चले गए थे और एक वटवृक्ष के मोटे तने में तक़रीबन 300 साल तक समाधि में ही थे ! एक लकड़हारे की, लकड़ी काटने की, गलती से ही उनकी समाधि टूटी ! समाधि टूटने के बाद स्वामी जी ने काशी-प्रयाग-हरिद्वार सहित कई तीर्थ-स्थानों का भ्रमण किया और अंततः सोलापुर के अक्कलकोट में खंडोबा मंदिर के निकट, 1856 में, पहली बार लोगों को उनका दर्शन हुआ !
स्वामी समर्थ मंदिर, अक्कलकोट, सोलापुर, महाराष्ट्र
कहा जाता है, कि, स्वामीजी की महान अध्यात्मिक आभा से शिर्डी के साईं बाबा, शेगाँव के गजानन महाराज और रामकृष्ण-परमहंस सहित कई महान संत प्रभावित हुए ! आम जनमानस तो आज भी उन्हें दत्तात्रेय स्वरुप में ही पूजता है ! अक्कलकोट स्थित अपने, चोल्लपा नामक, भक्त के ही यहाँ निवास करते हुए सन 1878 में उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और चिरकालिक समाधि ले ली ! समाधि के निकट उनका प्रिय वटवृक्ष और उनका मंदिर आज भी अध्यात्म-क्षेत्र में रुचि व् आस्था रखने वालों को दिली-तौर पर ख़ासा आकर्षित करता है ! सोलापुर की पहचान अक्कलकोट से ही होती है ! आप चाहें तो इन महान संत की चिर-समाधि की अनुभूति यहाँ आकर कर सकते हैं !
डॉ. सुनील लाम्बे
मुंबई
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