संपत्ति कानून में महिलाओं को शामिल करने की है ज़रूरत

नरजिस हुसैन

चल-अचल संपत्ति और महिला सशक्तिकरण का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है। कई अलग-अलग शोध और अध्ययनों से अब यह बात साफ है कि जिन महिलाओं के नाम चल या अचल संपत्ति होती है वे घरेलू हिंसा सहित कई अन्य शोषण और गैर-बराबरी की शिकार या तो होती नहीं और या फिर कम होती हैं। संपत्ति महिला को न सिर्फ सशक्त बल्कि उसे आत्म विश्वासी और परिवार या समाज में निर्णय लेना की हिम्मत भी दिलाती है। अक्सर देखा गया है कि ऐसी महिलाओं को परिवार और समाज का समर्थन भी खूब मिलता है।

देश में उत्तर-पूर्वीं राज्यों के अलावा दक्षिण में केरल एकमात्र ऐसा राज्य था जहां मातृसत्तात्मक समाज का वजूद था। हालांकि, उत्तर पूर्वी राज्यों में यह प्रथा अब तक बरकरार है लेकिन, कई कारणों से अब यह प्रथा केरल में खत्म हो गई है। केरल विधानसभा ने Joint Family System (Abolition) Act, 1975, में कानूनी तौर पर राज्य में मातृसत्तातमक प्रथा को खत्म कर दिया था। और इसके तहत मां अब खुद संपत्ति के लिए पति पर निर्भर है। ये बात और है कि अब भी केरल के कई पुराने परिवार मां के नाम को ही पूरी उम्र साथ रखते हैं। केरल की ऐतिहासिक मातृसत्तातमक समाज के ही देन है जो आज भी राज्य कई मानकों (शिक्षा, स्वास्थ्य, लिंगानुपात) में अन्य राज्यों के मुकाबले काफी आगे है।

जिस तरह केरल में मातृसत्तातमक प्रथा खत्म हुई वैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में न हो, इसके अलावा देश में महिलाओं के संपत्ति से जुड़े अधिकारों के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानकारी का प्रसार किया जाए इसके लिए सरकार और इससे जुड़ी संस्थाओं को अभियान चलाने की जरूरत है। जरूरत इस बात की भी है कि आखिर किस तरह भविष्य में महिलाओं को उनके संपत्ति के अधिकारों के बारे में जागरुक किया जाए। वो संपत्ति जिसकी वे हकदार हैं चाहे वह पिता की संपत्ति में हो या फिर पति की। तारीफ की बात यह है कि देश में फिलहाल कई गैर-सरकारी संस्थाओं ने इस दिशा में काम करने का जिम्मा लिया है। नेशनल फांउडेशन फॉर इंडिया की मदद से चल रहे गर्ल्स काउंट अभियान भी देश भर में महिलाओं और लड़कियों के संपत्ति के अधिकार की बात करता है और महिलाओं लड़कियों को उनके इस अधिकार से रू-ब-रू कराता है।

इन अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार को सबसे पहले आगे आना होगा ताकि बाकी के साझेदारों का भी मनोबल बढ़े। सरकार को नीति बनाने के स्तर पर ये देखना जरूरी हो कि देश में जो भी नीतियां या योजनाएं बनाई जाती हैं उनमें कहीं न कहीं महिला की वित्तीय सशक्तिकरण की बात जरूर है। या फिर कानूनी रूप से संशोधन के तहत ऐसा कोई नियम बाद में जोड़ा जाए जो इनके हित में हो। सरकार अगर समानता की बात कर ही रही है तो उसे देश में महिलाओं के जमीन/मकान पर कानूनी अधिकार का एक ब्यौरा तैयार करवाना होगा। इसके साथ ही क्योंकि जमीन राज्यों का विष्य है तो उसे राज्यों के भूमि अधिकार कानून में बेहतरी को बढ़ावा देते हुए महिलाओं के नाम हाउसिंग स्कीम नियोजित तौर से शुरू करनी होगी जिसके अमल पर समय-समय पर जायजा लिया जाता रहे।

केन्द्र सरकार को न सिर्फ खुद बल्कि राज्यों को भी महिला हाउसिंग स्कीम के लिए बढ़ावा देना होगा। लो इनकम हाउसिंग स्कीमसे काफी बड़ तादाद में महिलाओं का अपने नाम पर घर का सपना साकार होगा और घर अब उनकी पहुंच में होगा। सरकार को चाहिए कि वित्तीय संस्थानों और उनकी योजनाओं को इस तरह से मदद दें कि वे महिलाओं को लोन देने के नियम और शर्तो में थोड़ा लचीलापन बनाएं। केन्द्र और राज्यसरकारें महिलाओं के रोजी-रोटी से संबंधित कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करें, कृषि भूमि पर नियंत्रण और खरीद-फरोख्त के नियमों और सरकारी प्रक्रियाओं में थोड़ी रियायत दे ताकि महिलाओं को कानूनी दोवपेंच के भूमि के टुकड़े पर मालिकाना स्वामित्व मिले।

सरकार को महिला पुरुष का भेद मिटाते हुए कानून बनाने होंगे जिससे मौजूदा महिलाओं के कानूनी अधिकारों को समर्थन मिले। इन कानूनों के दायरे में सभी राज्यों, समाजो और धर्मों की महिलाएं शामिल हो इस बात का भी ख्याल रखना जरूरी है। सरकार को हर समाज और समुदाय के हर उस कानून को खत्म करना होगा जो मिहला को संपत्ति के अधिकार से बाहर रखते हैं। शादी के बाद भी पैतृक घर में उसका वजूद बना रहे इसके लिए भी कानूनों और योजनाओं की मदद लेनी होगी तभी सरकार महिला और पुरुष की असमानता को काबू कर सकेगी।

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