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“मैं ज़िंदा हूँ”
साहित्य की शक़्ल में वो कहते हैं- "मैं ज़िंदा हूँ" । उम्र के सातवें दशक में चल रहे डॉ. गया सिंह इसी फ़िराक़ में हैं ....
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“IHRO में स्वागत है”
ज़्यादातर संस्थाए अपने नफ़ा-नुक़सान के चलते मानवाधिकार शब्द को ख़ासे धंधे में तब्दील कर दिया है .....
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“NO टू मोनोपोली”
टी.वी. ताक़तवर है, पर ख़बर समेटने के मामले मेँ साधनहीन । दिन भर मेँ एक-दो से ज़्यादा ख़बरें ढंग से नहीँ ....
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